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________________ जागे सो महावीर जीवन का पहला आर्य सत्य है : कर्म है, क्योंकि हर प्राणी कर्म से आबद्ध है, अपने-अपने कर्म अनुसार प्रवर्तित है। दूसरा आर्य सत्य है : कर्म काटा जा सकता है, क्योंकि कर्मों को काटने का मार्ग है। तीसरा आर्य सत्य है : कर्म-मुक्ति सम्भव है, क्योंकि कर्मों की प्रगाढ़ जंजीरों से मुक्त होकर ही अब तक अनगिनत लोग अमृत निर्वाण-पद के स्वामी हुए हैं। ___ कर्म से मुक्त होने के लिए 'सहजता' को जीवन का गुरुमंत्र बना लें। जब, जो, जैसा उदय में आएगा, तब, वह, वैसा, सहज स्वीकार होगा। किसी भी उदयकाल के प्रति असंतोष न हो। हर हाल में सहज, हर हाल में मस्त। एक बात तय है कि जिसका उदय होता है, उसका विलय अवश्य होता है, फिर चाहे वह अनुकूलता का उदय हो या प्रतिकूलता का। अनुकूलता के चलते अहंकार न हो और प्रतिकूलता के कारण चित्त में दुःख-दौर्मनस्य न हो। सहजता, हर हाल में सहजता। । 'सजगता' कर्म से मुक्त होने का दूसरा गुरुमंत्र है। जीवन में जब, जो, जैसा, उदय होगा, हम उसके प्रति मूर्च्छित नहीं होंगे। हर हाल में सजग रहेंगे। अन्तरवृत्ति के प्रति भी और बाह्य-प्रवृत्ति के प्रति भी। बेहोशी में हाथ हिलना तो दूर, पलक भी न झपकें। खाना-पीना, उठना-बैठना, चलना-फिरना, मेल-मिलाप करना, भोग-उपभोग करना, सब कुछ सजगतापूर्वक हो। _ 'निरपेक्षता' को कर्म से मुक्त होने का तीसरा गुरुमंत्र जानें। सबके बीच रहें, पर फिर भी सबसे निर्लिप्त-निरपेक्ष। 'न काहू से दोस्ती, न काहू से वैर।' सबके बीच, फिर भी सबसे ऊपर। 'सबसे मिलकर चालिये, नदी-नाव संयोग।' संबंधों को मात्र नदी-नाव का संयोग भर जानें। किसी के जन्म पर खुशी नहीं, किसी की मृत्युपर गम नहीं। जो है, सब संयोग भर है। हर परिस्थिति को तुम संयोग भर जान लो। तुम आश्चर्य करोगे कि कोई भी बात तुम्हें प्रभावित नहीं कर पा रही है। तुम वीतराग भी रहोगे और वीतद्वेष भी। तुम घर में रहकर भी तब संत-स्वरूपी बन चुके होओगे। व्यक्ति ऐसे जिए जैसे जल में कमल निर्लिप्त रहता है। संसार में रहकर भी संसार का होकर न जीना। यह कठिन है, पर निर्लिप्त जीवन जीना ही आध्यात्मिक जीवन जीने की कला है। आज इतना ही अनुरोध है। आप सब के लिए आत्मीय अमृत प्रेम और नमस्कार! 000 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003888
Book TitleJage So Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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