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________________ २३७ जागे सो महावीर भगवान ने जब जागृति की बात कही तो उनकी ही एक अनन्य उपासिका ने भगवान से प्रश्न किया कि प्रभु ! किसका जगना और किसका सोना श्रेयस्कर है? भगवान उत्तर देते हुए कहते हैं-'धार्मिकों का जगना और अधार्मिकों का सोए रहना ही श्रेयस्कर है।' यह बात भगवान ने वत्स देश के राजा शतानीक की बहन जयन्ती को कही। . धार्मिक का जागरण श्रेष्ठ है, अधार्मिकों का शयन। धार्मिकों की सक्रियता श्रेष्ठ है, अधार्मिकों की निष्क्रियता। अगर धार्मिक व्यक्ति जागृत रहेगा तो वह सम्पूर्ण विश्व के कल्याण में सहायक होगा, वहीं यदि अधार्मिक व्यक्ति जगा रहा तो सारी दुनिया तबाह हो जाएगी। आजधार्मिक व्यक्ति को चाहिए कि वह अपनेअपने समाज और धर्म की संकीर्णताओं को छोड़कर मानव-कल्याण के लिए आगे आए और सम्पूर्ण जगत् को गले लगाए। आज हर प्रबुद्ध और धार्मिक व्यक्ति का यह परम कर्त्तव्य है कि वह संसार में प्रेम और शान्ति के मार्ग को बढ़ाने के लिए चार कदम आगे आए। ___ दुराग्रहों और संकीर्णताओं के डिब्बों में बहुत जी लिए। कुए के मेंढ़क कब तक बने रहेंगे। सागर तुम्हें अपनी ओर निमंत्रण दे रहा है। तुम उसका निमंत्रण स्वीकार करो। तुम प्रबुद्ध हो, तो अपनी बुद्धि को, अपनी पहुँच का उदारता से उपयोग करो। ____ अंधेरा चाहे कितना भी सघन क्यों न हो, पर उस अन्धेरे को मिटाने और भगाने के लिए दो-चार दीपक ही पर्याप्त हो जाया करते हैं। अगर सौ व्यक्ति सोए हुए हों और एक व्यक्ति जागा हो तो भी यह कहा जाएगा कि सौ के सौ व्यक्ति जागृत हैं। क्योंकि घर के बाहर पहरा लगा है, चौकीदार की एक सीटी ही सबको जगा देगी। एक धार्मिक व्यक्ति, सौ अधार्मिक व्यक्तियों पर भारी पड़ेगा। सौ कौरवों पर पाँच पाण्डव ज्यादा बलशाली हो जाया करते हैं। सौ झूठों पर विजय प्राप्त करने के लिए एक अकेला सच बहुत है। जो धार्मिक हैं, उनका यह परम पुनीत कर्त्तव्य है कि वह भगवान के प्रेम, शान्ति, करुणा, अहिंसा, मैत्री और पवित्रता के मार्ग को नगर-नगर, गाँव-गाँव तक पहुँचाए। व्यक्ति मन्दिर बनवाता है, एक मन्दिर बनवाने में औसतन एक करोड़ रुपए खर्च हो जाते हैं, पर उस मन्दिर का उपयोग कितने लोग करते हैं? उस मन्दिर का उपयोग गिनती के लोग करते होंगे। मैं कहना चाहूँगा कि प्रेम और शांति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003888
Book TitleJage So Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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