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जागे सो महावीर
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अगर व्यक्ति होशपूर्वक गाली निकालेगा तो गाली मुँह में आधी आकर ही रह जाएगी, वह तत्काल सँभल जाएगा। उसका होश और उसकी सजगता उसे क्रोध के नरक से बचा लेगी। महावीर कहते हैं कि व्यक्ति आत्म-जागरूकता पूर्वक क्रोध भी करेगा तो वह एक-न-एक दिन उस क्रोध से अवश्य उपरत हो जाएगा। __व्यक्ति विवाह करता है, दाम्पत्य-जीवन को जीता है, क्रोध को छोड़ना आसान है, माँ-बाप और घर-परिवार को छोड़ना भी आसान है, पत्नी को छोड़ना भी आसान है, पर मन में उठने वाली विकृत तरंगों को छोड़ना कठिन है। व्यक्ति की सबसे बड़ी मजबूरी यही है। इसी के कारण व्यक्ति को संसार में भटकना पड़ता है। जमीन-जायदाद, धन-दौलत व्यक्ति के लिए अधिक बाधक नहीं बनते, क्योंकि वह जानता है कि एक दिन तो इन्हें छोड़ना ही है। अध्यात्म की साधना में सबसे अधिक बाधक उसके मन में उठने वाली विकृत तरंगें हैं।
सच्चा महावीर वही है, जो मन की भड़ास पर विजय पा ले।
एक आदमी को अपनी सन्तान से क्यों प्यार होता है? क्योंकि वह उसी का परिणाम है। पड़ोसी का बच्चा भले ही अपने बच्चे से अच्छा क्यों न हो, पर उसके प्रति वह ममत्व नहीं उमड़ता क्योंकि वह आपकी तरंग का परिणाम नहीं है। वह भले ही जिए-मरे अथवा भूखा रहे, आपको फर्क नहीं पड़ता। पर अपने बच्चे के दुःख-सुख की चिन्ता, उसके प्रति प्रगाढ़ मूर्छा होती है। महावीर और बुद्ध जैसे लोग यदि विवाह करते हैं और उनके सन्तानें भी होती हैं तो उनकी जीवन के प्रति सजगता और होश, गृहस्थ-जीवन के उपभोगको नहीं, उनके कर्म-क्षय में सहायक बनाता है। अगर व्यक्ति होशपूर्वक सेवन करता है, उसे इस बात का बोध रहता है कि मैंने क्या किया, उसका क्या परिणाम आया तो उसकी यह सजगता उसे आज नहीं तो कल और कल नहीं तो परसों अवश्य ही इस मार्ग से उपरत कर देती है। भगवान ऋषभदेव के सौ सन्तानें हुईं, पर उनकी जागरूकता ने, होश और बोध ने अन्तत: उन्हें मुक्त कर दिया।
अगर होशपूर्वक जीवन के किसी भी मार्ग का अनुसरण किया जाए तो व्यक्ति एक-न-एक दिन चाहे वह अवस्था बुढ़ापे की ही हो, पर गलत रास्तों से बाहर निकल ही आता है। अभी तो आप कहते हैं कि 'क्रोध बुरा है', फिर भी क्रोध किए जा रहे हैं, क्योंकि यह बात आपके होश या बोध में नहीं उतरी है। जिस दिन यह
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