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जागे सो महावीर
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और अनुभवों में वर्तमान का समाधान देखता हूँ। ऐसा नहीं है कि ये सूत्र सदा सार्थक ही रहे हों। अतीत में इन सूत्रों का उपयोग करने वाले भी रहे हैं और इन सूत्रों को व्यर्थ करने वाले भी रहे हैं। बात लगने की है। योग्य पात्र में योग्य वस्तु रख दी जाए, तो दोनों ही सार्थक हो जाते हैं। अयोग्य पात्र में योग्य बात उतार भी दी जाए, तो भी अर्थहीन ही है। स्वाति की जल-बूंद सर्प के मुँह में उतरकर जहर बन जाती है, जबकि सीप में पहुँचकर वही मोती बन जाती है। ये सूत्र, सूत्र ही क्यों, इनके माध्यम से कही जाने वाली बातें जिनकी भूमि उर्वरा होगी, उनके लिए सार्थक बीजों का काम करेंगी। भूमिही अगर बंजर है, तो बीजों का व्यर्थ जाना स्वाभाविक है। मैं तो माँझी हूँ, जो फिर भी नौका लिये खड़ा रहूँगा, इस आशा में कि शायद किसी को नौका की तलाश हो। ___कहते हैं : भगवान के सान्निध्य में परस्पर चर्चा चल रही थी। भगवान के कुछ भिक्षु, दूसरे भिक्षुओं से बात करते हुए कह रहे थे कि अमुक गाँव बहुत ही सुन्दर
और अच्छा है। तभी दूसरा भिक्षु बोला, 'अरे ! मैं जिस गाँव में गया, वह तो बहुत ही बेकार और गन्दा है।' तीसरा बोला, 'मैं जिस गाँव में गया वहाँ के लोग बहुत ही उज्जड़ और बेवकूफ हैं।' चौथा बोला, अमुक गाँव के लोग बहुत अच्छे हैं, राह भी साफ-सुथरी है और वहाँ बहुत ही सुन्दर उद्यान भी है।
भगवान कुछ देर मौनपूर्वक उनकी बातें सुनते रहे। भगवान के सान्निध्य में रहकर भी जरूरी नहीं है कि भगवत्ता के फूल खिलाए जा सकें। लोग ऐसी बातों में फँस जाते हैं कि अमुक अच्छा अथवा अमुक बुरा । इसी की चर्चा में अपना समय बिता देते हैं। भगवान ने कुछ देर बाद उन्हें सावचेत करते हुए कहा, 'मेरे प्रिय वत्स ! तुम लोग किस सौन्दर्य और माधुर्य की बात कर रहे हो? तुम किस उज्ज्ड़पन, बेवकूफी और गन्दगी की चर्चा कर रहे हो? तुम किन राहों के बारे में बतिया रहे हो? जरा तुम यह सोचो तो सही कि तुम यहाँ किसलिए आए थे और क्या करने लग गए।' ___ भगवान की बात उनके जिगर तक पहुँची और बाहर की बातों में मशगूल, अपने समय और श्रमणत्व का दुरुपयोग करने वाले लोग, तब-तब किन्हीं महावीर जैसे महापुरुषों द्वारा कही जाने वाली बातों से फिर-फिर सावचेत हुए हैं। उनमें मुक्ति का कमल खिला है।
वे भव्य प्राणी रहे होंगे इसलिए भगवान की वाणी उनके जिगर तक पहुँच
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