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________________ धार्मिक जीवन के छह सोपान हमारे द्वारा प्रणाम समर्पित करने से गुरुजनों को कुछ नहीं मिलता, वरन् प्रणाम करके हम अपने ही कर्मों की निर्जरा करते हैं। हमारे पास लोग आते हैं और विनीत भाव से वन्दन करते हैं। यह उनका सौभाग्य है कि किसी संत को देखकर उनके हाथ जुड़ते हैं, माथा झुकता है। वे हमसे मंगल पाठ देने को कहते हैं। कभीकभी तो ऐसा होता है कि एक ही दिन में दो सौ-तीन सौ बार मंगल पाठ का उच्चारण हो जाता है। कभी-कभार लोग पूछते हैं कि क्या आपको बार-बार मंगल पाठ देने में कोई तकलीफ नहीं होती? मैं कहता हूँ कि 'अरे ! तकलीफ कैसी, बल्कि मुझे तो आपका शुक्रिया अदा करना चाहिए कि आप लोगों ने मुझे परमात्मा के नाम-स्मरण और उनके मंत्र के उच्चारण का मौका दिया। आप तो परमात्मा की स्तुति की स्मृति दिलाने में मेरे सहायक बने।' मंगल पाठ में नवकार मंत्र ही तो बोला जाता है । जिस महामंत्र के लिए कहा जाता है- 'अड़सठ अक्षर एहना जाणो अड़सठ तीर्थ सार।' इन अड़सठ अक्षरों के स्मरण मात्र से अड़सठ तीर्थों की वंदना का लाभ मिल जाता है। एक नवकार के स्मरण से पाँच महान पदों की, पंच परमेष्टि की वंदना हो जाती है । वंदन करने से व्यक्ति अपने कर्मों की निर्जरा कर लेता है, उनका क्षय कर लेता है। अहंकार को तोड़ने का, ईगो को खत्म करने का एक ही माध्यम है और वह है 'वंदन' । हम याद करें बाहुबलि को, जो वंदन न कर पाने के कारण चौदह साल तक वनों में उग्र तपस्या करते रहे फिर भी केवलज्ञान को प्राप्त न कर सके। जब उनकी अपनी ही बहिनों ने उन्हें वन में इस तरह उग्र तपस्या करते देखा तो उन्होंने बाहुबलि के अभिमान को तोड़ने के लिये कहा था : 'वीरा म्हारा, गज थकी नीचे उतरो।' अभिमान के गज पर चढ़कर किसी को केवलज्ञान नहीं मिलता है। केवलज्ञान को प्राप्त करने के लिए अहंकार को विगलित करना प्रथम आवश्यक है। सरलता और निरभिमानता ही व्यक्ति को आगे के सोपानों तक पहुँचाती है। आप सुबह उठते हैं तो भगवान की प्रार्थना के बाद घर के सभी सदस्यों का अभिवादन करें। बेटा बाप के, बाप बेटे के, बहू सास के और सास बहू के सब एक-दूसरे के प्रति अभिवादन करें। यह मत सोचें कि ऐसा करने की तो हमारे घर में परंपरा ही नहीं है। परंपरा तो आप डालेंगे तो पड़ जाएगी। ___ अगर बेटा सुबह उठकर आपको नमस्कार न करे तो आप ही अपनी तरफ से कह दें-'बेटा, नमस्कार।' उसको भी आपके अभिवादन का जवाब देना ही होगा और वह अगले दिन से स्वयं ही आपको पहले नमस्कार कर देगा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003888
Book TitleJage So Mahavir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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