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जागे सो महावी
ऐसा करता है तो यह उसकी मूर्खता है। पापी वह नहीं है जो गलत आचरण करता है, बल्कि पापी वह है जो जानने-समझने के बाद भी अपनी दुष्प्रवृत्तियों को दोहराता है। भगवान कहते हैं
सुबुहं पि सुयमहीयं, किं काहिइ चरण विप्पहीणस्स।
अंधस्स जह पलित्ता, दीव सय सहस्स कोडि वि॥ चारित्रशून्य व्यक्ति का विपुल शास्त्राध्ययन उसी प्रकार व्यर्थ है जैसे किसी अन्धे के सामने हजारों दीप जला दिए जाएँ। याद रखें, ज्ञान वही प्रभावी और प्रेरणास्पद होता है जो आचरण से मुखरित हो। हजार मील का शास्त्र पढ़ने की अपेक्षा दो इंच का आचरण कहीं अधिक प्रभावी होता है। मन भर के भाषण की अपेक्षा कण भर का आचरण अधिक श्रेयस्कर होता है। कोई अच्छा बोलना नहीं जानता तो कोई चिन्ता नहीं, क्योंकि वह अच्छा जीवन जीना जानता है। उसका जीवन गरिमामय, आदर्शमय और दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत होता है। जिनका आचरण ऊँचा होता है, वे ही पूजनीय बनते हैं।
जो व्यक्ति ईमानदारी और प्रामाणिकता का जीवन जीते हैं, उन्हें कभीकभी लगता है कि उनकी अपेक्षा बेईमानी करने वाले अधिक आराम से हैं। पर ऐसा सोचने से पहले वे उनके रात-दिन के जीवन की पड़ताल तो कर लें। पति खाना खाने बैठता है तो पत्नी एक फुलके से ज्यादा नहीं रखने देती क्योंकि डॉक्टर ने ज्यादा देने से मना किया है। सब्जी बिना नमक की होती है। मिठाई को वह दूर से ही जान सकता है कि यह रसगुल्ला है और यह राजभोग। तेल-घी खा नहीं सकता। रोटी भी सूखी ही नसीब होती है और सब्जी भी उबली हुई। कैसे अंतराय हैं उस व्यक्ति के। क्या इसे आरामपूर्ण जीवन कहा जा सकता है। दूसरी ओर एक गरीब जब चाहे, जैसा चाहे खा-पी सकता है। उसके आहार-विहार पर इतनी पाबंदियाँ नहीं होतीं। यही कारण है कि रोग अमीरों के ही स्थायी मेहमान होते हैं। इसी तरह वकील भी बेईमानों के ही होते हैं, क्योंकि जो धोखा करता नहीं, उसको किससे बचने के लिए मुकदमे करने पड़ेंगे। ईमानदार व्यक्ति के लिए जो आज सत्य है, कल भी सत्य था और आने वाले कल को भी वही सत्य रहेगा।
झूठा व्यक्ति ही गीता पर हाथ रख कर कसमें खाता है। सत्यवान् व्यक्ति का तो हर वचन ही गीता का उद्घोष है। इसलिए जो कहो, वही करो और जो करते
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