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________________ इन्हीं पाँच तत्त्वों का उल्लेख है । बुद्ध के पंचशील में भी यही पाँच तत्त्व मान्य हैं। अब यह तय है कि भारतीय संस्कृति में भारतीय नैतिक व जीवन-मूल्यों को जीना है तो इन तीनों महापुरुषों की एक ही प्रेरणा है कि जीवन में अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का पालन करें । पतंजलि, महावीर और बुद्ध तीनों विभिन्न मतों के होते हुए भी इस बात पर एक हैं कि हिंसा मत करो, झूठ मत बोलो, चोरी मत करो, निरंकुश परिग्रह मत रखो और असंयमित मैथुन का उपभोग मत करो। ये जीवन के पंचामृत हैं, नैतिक मूल्य हैं। जो हमें जीवन को सरल और मृदु तथा सहज बनाना सिखाएँ वही तो नैतिक मूल्य हैं। जो स्वयं के लिए भी मंगलकारी हो और दूसरे का भी मंगल करे ऐसी नीति हो तो नैतिक मूल्य कहलाते हैं । जिओ और जीने दो - प्रेम से । जो व्यवहार स्वयं के लिए चाहते हो वही व्यवहार दूसरों के लिए भी चाहो - यही नैतिक मूल्य है । पहला है, अहिंसा - अर्थात् हिंसा पर अंकुश । कोई भी हिंसा से पूर्णत: तो मुक्त नहीं हो सकता फिर भी न्यूनतम हिंसा हो यानी आवश्यक हिंसा । यूँ तो बोलने, खाने, चलने से यानी कुछ भी करें हिंसा तो हो ही जाएगी। बोलेंगे तो वायु के जीवों की हिंसा होगी, खाना बनाएँगे, चलेंगे तो अग्नि से जुड़े जीवों की हिंसा होगी, भोजन ग्रहण करने पर वनस्पति से जुड़े जीवों की हिंसा होगी, चलेंगे तो ज़मीन पर रेंगने वाले छोटे-छोटे कीड़े-मकोड़ों की हिंसा हो जाएगी। इस तरह व्यक्ति सर्वथा तो हिंसा से मुक्त हो ही नहीं सकता। इसलिए यम का पालन हो, अंकुश तो लगाना है, पर हाथी कब चले और कब रोक लिया जाए, कब बिठा दिया जाए इसलिए अंकुश का प्रयोग करना है । लगाम घोड़ों को रोकने के लिए नहीं बल्कि उन्हें सुव्यवस्थित तरीके से चलाने के लिए होती है। हिंसा पर अंकुश अर्थात् कितने प्रतिशत हिंसा का त्याग करना है, यह विचार ज़रूरी है । हिंसा तीन प्रकार से संभावित है - मानसिक, वाचिक और कायिक । मन, वाणी और काया के द्वारा होने वाली हिंसा पर व्यक्ति अंकुश लगाए । मन में संकल्प और विकल्प तो आएँगे, पर उसमें हिंसा के भाव आ रहे हैं तो व्यक्ति अंकुश लगाए । परिवार में, समाज में रहकर वाणी का उपयोग तो करना होगा, लेकिन प्रिय और मधुर वाणी का उपयोग करना होगा। वाणी का उपयोग करते हुए अविवेक आ जाए, निंदा, कटु, कठोर शब्द बोलें जा रहे हों जिनसे दूसरों को ठेस पहुँच रही हो, तो तुरंत वाणी पर अंकुश लगा लेना चाहिए। सोते, जागते, उठते-बैठते या हाथों का उपयोग करते हुए कोई हिंसा हो रही हो तो उस पर लगाम कस लेना । हिंसाजनित कायिक प्रवृत्ति 100 | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003887
Book TitleYoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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