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________________ करता जाता है। जीवन में अगर अंधेरा है तो दीप जलाने होंगे। क्लेश और संक्लेशों को हटाने के लिए शांति की बयार लानी होगी, आनंद का कमल खिलाना होगा। जीवन में सदाचार और सद्विचार की गंगा-यमुना बहानी होगी। पतंजलि ने एक क्रमबद्ध तरीके से योग को हमारे समक्ष रखा है। जितनी सुव्यस्थित प्रक्रिया आध्यात्मिक जीवन को ऊपर उठाने के लिए पतंजलि ने दी है उतना सुव्यवस्थित विज्ञान अन्य कोई शायद नहीं दे पाया। दूसरे शास्त्रों को पढ़कर प्रक्रिया बनाई जाती है जबकि योगसूत्र निर्मित प्रक्रिया है। योग-सूत्रों में इतनी बारीकियों से मानव-मन को कुरेदा गया है कि सब पिक्चर बिलकुल स्पष्ट हो जाती है। हालांकि आज के मानव को शायद इसकी इतनी ज़रूरत नहीं है। आज तो लोगों को 'की' (चाबी) चाहिए कि ताला खोला और दरवाज़ा सामने हो। हमने पतंजलि के 'चाबी' वाले सूत्र ही लिए हैं ताकि भीतर के दरवाज़े खोल सकें। __ होलमन हंट की एक सुंदर कृति के बारे में मैंने पढ़ा है। उस मशहूर कलाकार ने एक सुंदर चित्र बनाया, जिसमें दिखाया गया है कि जीसस एक बाग में खड़े हैं। उनके एक हाथ में लालटेन है और दूसरे हाथ से वे दरवाज़ा खटखटा रहे हैं। __ एक मित्र ने उस मशहूर कलाकार से पूछा, 'होलमन, तुमने एक ग़लती की है। तुमने इस चित्र में जो दरवाज़ा पेंट किया है, उसमें हैंडल नहीं है।' होलमन ने जवाब दिया, 'यह ग़लती नहीं है। क्योंकि यह मानव-हृदय का दरवाज़ा है जो केवल अंदर से खुलता है।' योग भीतर के दरवाज़ों को खोलने का तरीका है। 'योग' सार्वभौमिक सत्य है। योग केवल स्वास्थ्य या मानसिक शांति ही प्रदान नहीं करता अपितु यह हमें हमारे अंतस्तल से जोड़ते हुए ब्रह्माण्डीय ऊर्जा से भी जोड़ता है। यही कारण है कि जब हम ध्यान-साधना करते हुए समाधि की ओर बढ़ते हैं तब समाधि में वही अवस्था बनती है। जब साधारण ऊर्जा और साधारण चेतना से ऊपर उठकर असाधारण चेतना, असाधारण ऊर्जा, ब्रह्माण्डीय ऊर्जा से स्वयं को जोड़ते हैं तब व्यक्ति साधारण मन, वाणी और देह से ऊपर उठ चुका होता है। तब भीतर की ऊर्जा आकाशीय ऊर्जा के साथ एकतान, एकलय, एकरूप हो जाती है। यही ऊर्जा हमारी आन्तरिक शक्ति को, आत्मगत शक्ति को बढ़ाती है। यद्यपि कुछ शास्त्र कहते हैं कि आत्मा की शक्ति अनंत है, उसकी दृष्टि, उसका ज्ञान अनंत है, पर मेरा अनुभव बताता है कि जब ब्रह्माण्डीय ऊर्जा का आत्मा की ऊर्जा से मिलन होता है तभी उसकी ऊर्जा, मेधा और 96 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003887
Book TitleYoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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