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उखड़े बिना उधर नहीं लग सकते। मन को अगर रब में लगाना है तो जग से हटाना पड़ेगा। दो नावों में सवारी नहीं की जा सकती। राग-द्वेष से निकलने का एक मात्र सहज और सरल तरीका है इधर से उखाड़ और उधर लगा। जितना उखाड़ोगे उतना पाओगे, हाँ उखाड़ोगे ही नहीं तो पाओगे कहाँ से।
__हमें ख़ुद ही फ़ैसला करना है कि हम किसे चाहते हैं ईश्वर को या संसार को? व्यक्ति के अंदर जितनी गहरी वासना होती है उतना ही गहरा जब प्रभु का स्मरण होता है तभी प्रभु इंसान के क़रीब होते हैं। अगर प्रभु क़रीब नहीं हैं तो इसका मतलब है हमारी वासनाएँ अधिक गहरी हैं। प्रार्थना तो वीतरागता की करते हैं, पर भावनाएँ राग की हैं, कामनाएँ भी राग की हैं। इसलिए केवल प्रार्थनाओं से काम नहीं चलेगा, मन को विकारों से भी उखाड़ना पड़ेगा क्योंकि प्रार्थना तो होठों से होती है और कामनाएँ मन व दिल में उठा करती हैं। भीतर से जब तक कोई इंसान उखाड़ेगा नहीं तब तक दूसरी ओर लग नहीं पाएगा। जितना उखाड़ोगे उतना पाओगे। अगर उखाड़ोगे ही नहीं तो पाओगे कहाँ से।
___ कल तक जहाँ न राग था न द्वेष था, आज अचानक मोह की ऐसी जंजीर बनी कि राग में आ गए और कल कुछ ऐसा भी हो सकता है कि द्वेष उत्पन्न हो जाए। इसलिए पता नहीं चलता कि हम राग और द्वेष के पाटों में कब तक पिसते रहेंगे, कब तक इस दलदल में फँसे रहेंगे। यह तब तक जारी रहेगा जब तक हम अपनी सहजता में, अपनी आत्म-जागृति को उपलब्ध नहीं कर लेते। अगर हम शांति-पथ के अनुगामी बनना चाहते हैं तो सहजता के पथ के अनुयायी बनें और सदा स्मरण रखें - सहज मिले तो दूध सम - । ज़्यादा खींचतान करनी पड़े तो छोड़ दो। ज़्यादा खींचातानी टेंशन है। जो भी सुख में,शांति में मददगार हो वही स्वीकार्य हो और यही अगर अशांति के निमित्त बन जाए तो छोड़ दो। हमारा जन्म केवल दिनों को व्यतीत करने के लिए नहीं हुआ। शांति और सुकून सबसे पहले होने चाहिए। यह तभी होगा जब हम सहजता का अनुगमन करेंगे।सहज होने पर राग-द्वेष में नहीं उलझ पाएँगे।
राग को जीतने के लिए चित्त की स्थिरता ज़रूरी है। चित्त की स्थिरता के लिए अनासक्ति को साधना होगा। अनासक्ति तभी आएगी जब हम सहज होंगे। राग से उपरत होने के लिए सहजता ज़रूरी है। एक ही सूत्र, एक ही मंत्र, एक ही गीत, एक ही पद याद रखिए - सहज मिले सो दूध सम। इस एक अकेले मंत्र से मुक्त हो जाएँगे, हर चिंता, हर तनाव, हर सरपच्ची से। दूसरा है द्वेष। पौद्गलिक सुखों की अभिलाषा करना राग है तो दूसरों के द्वारा होने वाले अनुचित व्यवहार से हमारे मन में
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