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________________ कहाँ-कहाँ पैदा होता है। रोटी, कपड़ा और मकान हमारी मूलभूत आवश्यकता है। रोटी अगर नरम है तो ठीक, ज़रा कड़क हो गई तो दिमाग़ भी हो जाता है कड़क। सब्जी में नमक का संतुलन बराबर है तो अच्छी लगेगी, नमक कम-ज्यादा हो जाने पर क्रोध आ जाता है। खाना भी खाया तो 'यह' अच्छा लगता है और वह अच्छा नहीं लगता है। अच्छा लगना राग है और अच्छा न लगना द्वेष है। राग-द्वेष किन्हीं विशेष वस्तुओं या स्वजन-संबंधियों से ही नहीं होता, यह तो पल-पल ताने-बाने की तरह गुंथा हुआ रह सकता है। आप जानते हैं संत मतदान क्यों नहीं करते? क्योंकि उसमें छंटनी करनी पड़ती है और संतों की तो सभी के लिए यही मंगलकामना रहती है कि कोई भी जीते बस जनता का ख्याल रखे, भलाई के कार्य करे। संत जो आहार-चर्या के लिए जाते हैं उसे 'गोचरी' कहा जाता है। अर्थात् गौ के समान कुछ इधर से ले कुछ दूसरी जगह से और जब आवश्यकता के अनुरूप आहार मिल जाए तो वापस आ जाए। संत के पास चुनाव का स्थान नहीं है कि वह जो अच्छा लगे उसी को ग्रहण करे।सिर्फ़ आवश्यकतानुसार ही आहार लेना होता है। इसे 'मधुकरी वृत्ति' भी कहते हैं अर्थात् भंवरे के समान हर फूल, हर घर से थोड़ाथोड़ा आहार लिया जाए। इसी तरह कपड़ों के बारे में होता है। रोज़-ब-रोज़ कपड़ों के डिज़ाइन बदलते रहते हैं - यह किस वज़ह से? यह राग के नए-नए तरीके ईजाद हो रहे हैं। मकानों की साज-सज्जा बदल रही है पुराने मकान तोड़े जा रहे हैं नए बन रहे हैं। अपनेअपने रागों के पोषण हो रहे हैं, द्वेष के साधन निर्मित हो रहे हैं। चार ही तो अग्नियाँ हैं - राग, द्वेष, क्रोध और काम-वासना। ये अग्नियाँ व्यक्ति को जलाती हैं, संसार में उलझाती हैं, अटकाती हैं। राग और द्वेष की चक्की के दो पाटों में व्यक्ति पिसता रहता है और तब कबीर कह उठते हैं - चलती चक्की देखकर, दिया कबीरा रोय। दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोय॥ राग-द्वेष के निमित्त बदल जाते हैं, बन जाते हैं। इसीलिए कहता हूँ - ना काहू से दोस्ती - ना काहू से बैर- सहज भाव से अपना जीवन जिएँ। अगर बड़ाई (प्रशंसा) कर रहे हैं तो आपका बड़प्पन है, नफ़रत कर रहे हैं तो आपकी कमज़ोरी है। साधक तो वही रहता है पर नज़रें बदलती रहती हैं यह सब राग-द्वेष के कारण होता है। साधक की पहचान ही यही है कि वह राग-द्वेष रहित होकर सहजता से 86/ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003887
Book TitleYoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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