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________________ अब तो हर चीज़ बिकती है और जब व्यक्ति क़ीमत चुकाता है तो उसकी कद्र भी करता है। जो मुफ्त में मिलता है उसे कोई ढंग से न तो सीखता है और न ही याद भी रखता है। ढेरों योग-केन्द्र शुल्क वसूल कर जो भी सिखाते हैं वह बहुत अच्छा लगता है, उसमें गरिमा भी नज़र आती है,स्टेटस दिखाई देता है। लेकिन वही फ्री में हासिल हो जाए तो फोकटिए की क़ीमत फोकट जितनी ही होती है। मिट्टी का ढेला फोकट में मिलता है, तो देख लो धूल की क़ीमत कितनी होती है। सोने का ढेला हज़ारों का होता है, तो उसकी क़ीमत भी हज़ारों में होती है। व्यक्ति जानता है कि अगर धन खर्च करके साँस लेने का तरीक़ा भी सिखाया जाए तो गर्व से सीखोगे। विदेशों में साधु-संत प्रवचन भी देते हैं तो लोगों को टिकट लेकर ही प्रवेश मिलता है और यहाँ गली-सड़क-चौराहों पर भागवत् और सत्संग चलते रहते हैं, तो न तो उनको कोई ज़्यादा तवज्जो दी जाती है और न ही उनको जीवन में उतारा जाता है। दुनिया का रिवाज़ है : फोकट को फैंका जाता है और रोकड़ को समेटा जाता है। जीवन में लगने वाली ठोकर अपने-आप में एक अवसर है और अवसर अपने-आप में ही एक पूंजी है। जो अवसर का उपयोग करते हैं, वे अवसर से जीवन की पूंजी कमा लेते हैं। जो अवसर का उपयोग नहीं करते उनकी जेब फटी-कीफटी रह जाती है। ___व्यक्ति जीवन को सार्थक दिशा तब ही दे सकेगा जब ठोकर लगेगी या मूल्य चुकाना पड़ेगा अर्थात् कोई-न-कोई ख़ास घटना या ख़ास त्याग होगा तभी व्यक्ति अपने जीवन को सार्थक आयाम देगा। सार्थक आयाम देने वाला व्यक्ति ही चित्त के जंजालों से मुक्त होने का पुरुषार्थ कर सकेगा। अभ्यास और वैराग्य के द्वारा हम अपने चित्त की वृत्तियों पर अंकुश लगा सकते हैं, ध्यान और योग साध सकते हैं। कुछ वृत्तियाँ तो ठोकर लगने से कट जाती हैं, पर जीवन में रोज़-ब-रोज़ तो ठोकर नहीं लग सकती क्योंकि हमारे चित्त में जन्म-जन्मांतर के संस्कारों का ऐसा घनत्व है कि उन्हें काटने के लिए ध्यान के सघन अभ्यास की आवश्यकता है। पतंजलि कहते हैं ध्यान के द्वारा हम अपने चित्त की क्लेशकारी वृत्तियों का क्षय कर सकते हैं। हम देखें कि वृत्तियाँ क्या हैं, वे कैसी होती हैं, उनका प्रभाव कैसा होता है? चित्त के भीतर उठने वाले संस्कारों के घनत्व का नाम ही वृत्ति है ।वृत्ति वह है जो हमें कार्य करने की प्रेरणा देती है। हमारे भीतर से जो दबाव बनाते हैं वह दबाव वृत्ति है। हमारी प्रवृत्ति को जो करने की प्रेरणा दे वह वृत्ति है। प्रवृत्ति पौधे की तरह है और | 65 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003887
Book TitleYoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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