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________________ निरोध का प्रयत्न करेंगे। वैसे भी गुरु तो ज्ञान दे सकता है, मार्गदर्शन कर सकता है, अपनी वृत्तियों का निरोध तो ख़ुद ही करना होगा।अप्प दीपो भव - बुद्ध का प्रसिद्ध वचन है। अपने दिए खुद बनो, अपने गुरु भी खुदं बनो और स्वयं को मार्ग प्रदान करो। तुम इतने छोटे और दूधमुहे बच्चे भी नहीं हो कि मैं तुम्हारा गुरु बनूँ। तुम्हें चलना सिखाऊँ। आप अपना भला सोचने में खुद समर्थ हैं। क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए? यह आपको काफ़ी हद तक भली-भाँति ज्ञान है। मैं तो केवल एक कल्याण-मित्र का काम कर रहा हूँ। न मैं आगे हूँ, न आप पीछे हैं। अपन सब साथ-साथ हैं। फ़र्क केवल इतना है कि मेरे हाथ में दीया है और आप मेरे साथ हैं। किसी एक के पास भी दीया हो तो यही कहा जाएगा कि सबके हाथ में दीया है। किसी एक की रोशनी में भी हम लोग अपना सफ़र तय कर सकते हैं। अब फिर चाहे आप मुझे गुरु कहें,मास्टर कहें या आपका कल्याण चाहने वाला जीवन-साथी कहें। हमें यह याद रखना चाहिए कि सतत अभ्यास से ही कुछ हासिल किया जा सकता है। संभव है प्रारम्भ में सफलता न मिले लेकिन नियमित अभ्यास से शिखरों का स्पर्श किया जा सकता है। चित्त की वृत्तियाँ जो जन्मों-जन्मों से संचित की हुई हैं उनका अवसान करना ही योग की प्राथमिकता है। विचार तो इसी जन्म की उत्पत्ति हैं वे तो फुलझड़ियों की तरह हैं जो उठते हैं और विलीन हो जाते हैं लेकिन चित्तवृत्तियाँ न जाने कितने जन्मों से साथ चली आ रही हैं। इन वृत्तियों का शमन करना ही योग है। न जाने अपन लोग कब से क्रोध किए जा रहे हैं, भोगों को दोहराते चले जा रहे हैं। यानी कुल मिलाकर अब तक जो योग रहा है, वह केवल वृत्तियों का योग रहा है। बोध का योग, होश का योग, ज्ञान का योग रहा नहीं, इसीलिए तो जन्म-जन्मांतर से अज्ञान का योग रहा है, भोगों का भोग रहा है। हम अपनी वृत्तियों के गुलाम हो गए। हम वृत्तियों का ही संचय करते रहे हैं, इन्हीं का पोषण करते रहे हैं। हमें संतोष भी तभी होता है जब हमारी वृत्ति के अनुरूप हमें विषय उपलब्ध होता है। योग वृत्तियों का अवसान करता है, वृत्तियों से मुक्त होने में हमारी मदद करता है। . ___ व्यक्ति एक ही दिन में वृत्तियों से मुक्त नहीं हो जाएगा। इसके लिए अभ्यास की ज़रूरत है, होश और बोध की ज़रूरत है, जागरूकता की ज़रूरत है, अवेयरनेस और अलर्टनेस की ज़रूरत है। जीवन में जो कुछ भी किया जाए उसमें पूरा-पूरा होश और बोध बना रहे । होशपूर्वक कार्य करने वाला एक-न-एक दिन अवश्य मुक्त हो जाएगा। होशपूर्वक किया गया एक सत्कृत्य भी जीवनभर के पापों को धोने में सफल | 51 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003887
Book TitleYoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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