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________________ जैसे ही भीतर से प्रेरणा आई, उत्तेजना उठी, गुस्सा या वासना जगी कि उसका सारा ज्ञान काफूर हो जाता है और वह वैसा करने के लिए मज़बूर हो जाता है। जिस संस्कार के उदय से व्यक्ति यह वह सब कुछ करने के लिए मज़बूर हो जाता है उस विशिष्ट प्रेरणा - शक्ति का नाम ही चित्त है । हमारा यह चित्त शुभ भी हो सकता है और अशुभ भी। गीता कहती है - चित्त के तीन गुण होते हैं - तमोगुण, रजोगुण और सतोगुण | किसी के चित्त में सत्तर प्रतिशत तमोगुण होता है, बीस प्रतिशत रजोगुण और दस प्रतिशत सतोगुण होता है। सभी में तीनों गुण विद्यमान रहते हैं फिर भी चाहे वह साधारण मनुष्य हो या भयंकर अपराधी । फ़र्क़ केवल इतना है कि किसी में तमोगुण अधिक होता है, किसी में रजोगुण और किसी में सतोगुण अधिक होता है । जिसमें तमोगुण ज़्यादा होता है वह क्रोधी, अतिक्रोधी, अतिक्रूर, अतिलोभी, अतिघमंडी होता है । वह दूसरे को कुछ समझता ही नहीं है । अरे, अंधकार में रहने वाला दूसरे को क्या समझेगा। रजोगुण वाला दर्प से तो भरा होता है, पर दूसरों की मान-मर्यादा भी रख लेता है। रजोगुण में अहंकार तो होता है पर क्रूरता अधिक नहीं होती । उसके अंदर थोड़ी दया और क्षमा भी होती है, थोड़ा प्रेम भी रहता है । लेकिन सतोगुण अर्थात् वह गुण जिसमें धैर्य, क्षमा, शांति, करुणा, प्रेम, आनन्द- दशा सदा विद्यमान रहती है 1 तमोगुण की प्रेरणा से गलत कामों को अंजाम दिया जाता है, रजोगुण की प्रेरणा से स्वयं को स्थापित करने का अहंभाव और अभिमान जगता है और सतोगुण की प्रेरणा से हम प्रभु के दिव्य पथ का अनुसरण करते हैं। योग करने का उद्देश्य भी यही है कि हमारा तमोगुण कम हो। हमारे अंदर अधिक मात्रा में रजोगुण व तमोगुण विद्यमान है। योग, साधना, सत्संग, स्वाध्याय का उद्देश्य यही है कि हमारे अंदर सतोगुण का विकास हो । तमोगुण व रजोगुण घटते जाएँ । हम जो सायंकाल में प्रतिक्रमण या संध्या करते हैं वह इसलिए कि हे प्रभु, दिनभर में अगर किसी प्रकार का गलत चिंतन हो गया हो, गलत वाणी का उपयोग हो गया हो, गलत कर्म या व्यवहार हो गया हो तो हम बारम्बार क्षमा-प्रार्थना करते हैं । यह सद्भाव है और प्रत्येक व्यक्ति को सोने से पहले यह भाव अवश्य रखने चाहिए। अगर आज हमसे क्रोध हो गया तो समझ लेना कि आज हमारे चित्त में तमोगुण का उदय अधिक था इसलिए क्रोध हुआ । हाँ, अगर कोई आपसे गलत व्यवहार करे फिर भी आप शांति बनाए रख सके अर्थात् सतोगुण की प्रधानता थी इसलिए माफ कर सके। रोज परिवर्तन होता रहता है सागर की लहरों जैसे तमोगुण, रजोगुण, सतोगुण 42 | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003887
Book TitleYoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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