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________________ भी व्याप्त करें। जैसे सूरज की रोशनी चारों ओर बिखरती है ऐसे ही हृदय की रोशनी को हम अपनी बुद्धि और शरीर में प्रकाशित करें। बुद्धि सद्बुद्धि ही नहीं रहती, दुर्बुद्धि भी हो जाती है। मन सुमन ही नहीं रहता दुर्मन भी हो जाता है। प्रश्न है कि इसे हम प्रकाशित कैसे करें? बहुत से लोगों ने ढेरों उपाय ढूँढे होंगे, पर कोई भी उपाय मन को निर्मल नहीं कर पाया, मन को निर्विकार, अचंचल और एकाग्र नहीं कर पाया, विषयों से विमुख नहीं कर पाया। विषयों से विमुख होने का एक ही आधार है - हम अपनी बुद्धि, मन को प्रकाशित करें। अपने हृदय में ध्यान धरकर हम आत्म-ज्ञान के प्रकाश को प्रकट कर सकते हैं। हमारा हृदय वह द्वार है, जहाँ जाकर आत्म-ज्योति के प्रकाश से बुद्धि को प्रकाशित कर सकते हैं। अपने शरीर, मन, बुद्धि, विचार, वाणी और इन्द्रियों को निर्मल करने के लिए हृदय में ध्यान करें। संभव है कि यह प्रकाश बाहर तक फैल जाए तब हम देह में रहते हुए देहातीत, विदेह-अवस्था को उपलब्ध होंगे। निजता की खोज इस हृदय से ही जुड़ी हुई है। एक सुन्दर-सा गीत है - मैं आप अपनी तलाश में हूँ, मेरा कोई रहनुमा नहीं है। वो क्या बताएँगे राज़ मुझको, जिन्हें कि खुद का पता नहीं है। ये मस्जिदें, ये मंदिर,ये गिरज़े, ये सब उसी की पूजा के घर हैं। अगर ख़ुदा रहते हों यहीं पे, तो इनमें मेरा खुदा नहीं है। अगर मिले कोई यतीम मुझको, तो उसकी आँखों का अश्क पी लूँ। ख़ुशी की ख़ुशबू लुटा के जिऊँ, बिना ख़ुशी के ख़ुदा नहीं है। ये जिंदगी है नदिया का पानी, जो आज है वो ही कल नहीं है। हर मुश्किलों में भी मुस्कुराके, जो न जिया वो जिया नहीं है। देख रहा हूँ सारे जहाँ को ख़ुदा की कुदरत का लुत्फ लेता। दिलवर को अपने दिल में ही देखू, दिल से ख़ुदा भी जुदा नहीं है। ये 'चन्द्र' जाने पूजा न सज़दा, तू मेरी पूजा की लाज रखना। हर साँस मेरी, तेरी इबादत, हर साँस में क्या ख़ुदा नहीं है। ___मैं आप अपनी..... अपनी तलाश, आत्मा की तलाश के लिए जो लोग चल रहे हैं उन्हें समझ लेना चाहिए कि आत्म-ज्ञान का प्रवेश-द्वार, निजता की पूर्णता अगर कहीं से मिल सकती है तो उसका अकेला आधार, मंदिर और तीर्थ उसका अपना हृदय है। उस प्रकाश से | 187 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003887
Book TitleYoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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