SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 178
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ योग का अंतिम संदेश निजता की प्राप्ति मेरे प्रिय आत्मन्! प्रायः एक प्रश्न उठा करता है कि धर्म क्या है? कई साधक मुझसे यह प्रश्न पूछते भी रहते हैं। मैं एक ही पंक्ति में इसका उत्तर दिया करता हूँ कि निज स्वरूप की प्राप्ति ही हर व्यक्ति का धर्म है। तब अगला प्रश्न आया कि दुनिया में धर्म के नाम पर जितनी क्रियाएँ चलती हैं क्या वह धर्म नहीं है। मैंने कहा- ये सारी क्रियाएँ अपनी निजता की प्राप्ति के लिए ही बनाई गई छोटी-छोटी पगडंडियाँ हैं। इन सभी का उद्देश्य अपने स्वरूप को प्राप्त करना ही है। फिर पूछा गया कि क्या शास्त्रों में धर्म नहीं है। उनकी बात सुनकर मैं मुस्कुराया और कहा - शास्त्रों में धर्म नहीं होता। उनमें धर्म की अलग-अलग अभिव्यक्तियाँ होती हैं। उनकी अगली जिज्ञासा थी कि क्या पंथ और सम्प्रदाय धर्म नहीं होते। मैंने कहा - नहीं, ये भी धर्म नहीं होते। संप्रदाय और पंथ सामाजिक व्यवस्थाएँ होती हैं, एक संगठन होते हैं, धर्म कदापि नहीं। धर्म एक ही है कि अपनी निजता धारण की जाए। भगवान महावीर ने कहा है - वत्थु सहावो धम्मो।वस्तु का स्वभाव ही धर्म है अर्थात् जो जीवन को धारण करने वाला तत्त्व है, वह निजता का तत्त्व है और इस | 179 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003887
Book TitleYoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy