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________________ बीजमंत्र का प्रयोग किया गया। उस ध्वनि ने हमारे मस्तिष्क की कोशिकाओं को सकारात्मक लाभ प्रदान किया। हम ध्वनि में लीन हुए। मंत्रजाप की जो विधि है बैखरी, मध्यमा, पश्यन्ति, परा उनमें से पहला चरण बैखरी अर्थात् मंत्र का उच्चारण करना, वह सधा । माना कि ध्यान में मन नहीं लगा तो कम-से-कम दस मिनट मंत्रजाप तो हुआ।‘ॐ' उद्घोष नहीं, आह्वान है । ॐ का उच्चारण करते हुए परमात्मा को आह्वान दिया है, निमंत्रण, न्यौता दिया है । हे प्रभु! हम तुम्हें आह्वान देने के लिए पूरी तरह तत्पर हो चुके हैं। आत्म-समर्पण के भाव से ध्यान धर रहे हैं और तुम्हें अपने भीतर निमंत्रण दे रहे हैं कि पधारो प्रभु । जितनी बार 'ॐ' उतनी बार आह्वान | 1 'महावीर स्वामी नयनपथगामी भवतु मे । हे प्रभु, आप पधारो और हमारी आँखों के पथ से हमारे दिल में प्रवेश करो। 108 बार निमंत्रण देना । ओह, यह तो बहुत है प्रभु, अब आ ही जाओ । हाँ, 108 बार घोष करने से हमारे अंदर तन्मयता आती है, एकाग्रता घटती है, बैठने की क्षमता बढ़ती है। जब तन्मयता आ जाए तब उद्घोष बंद करते हैं और अपनी जागरूकता को श्वास-धारा पर केन्द्रित करते हैं । अब सचेतन प्राणायाम करते हुए 'ॐ' का स्मरण करते हैं । सचेतन प्राणायाम का पहला तरीका है कि 'ॐ' के स्मरण के साथ लम्बी साँस लीजिए और 'ॐ' की धारा के साथ ही श्वास छोड़िए- सहज और लयबद्ध । साँस गहरी, लयबद्ध और सचेतन होनी चाहिए। प्राणायाम करते हुए जब हम इन तीन बातों का ध्यान रखते हैं तो यह प्राणायाम धारणा और ध्यान में सहायक हो जाता है। आती हुई साँस के साथ 'ॐ' का स्मरण करें और जाती हुई साँस को ऐसे ही जाने दें। आती हुई साँस जीवन का और जाती हुई साँस मृत्यु का प्रतीक है। इसलिए जीवन को अपनाएँ । यदि आती और जाती दोनों साँसों का प्रयोग करना है तो 'सोऽहं' को अपनाएँ । आने वाली श्वास के साथ 'सो', जाने वाली श्वास के साथ 'हं' । 'सोऽहं' से लयलीनता तो बन जाएगी, पर 'ॐ' जैसे बीजमंत्र से वंचित रह जाएँगे। वह 'ॐ' जिसकी महिमा से सारे वेद, पुराण, स्मृतियाँ, आगम भरे हुए हैं उस बीजमंत्र का स्मरण करना अत्यंत लाभकारी है। हम ध्यान और समाधि की अवस्था तक भले ही न पहुँच पाएँ, ॐ कार के पुनः-पुन: स्मरण, पुन: पुन: चिंतन से हमारी स्मृति प्रखर होगी, ' धारदार बनेगी । पर ध्यान से पहले प्राणायाम का दूसरा प्रयोग है - तीन चरण बनाएँ - पहला चरण - बीस साँस का दूसरा चरण - तीस साँस का और तीसरा चरण - चालीस साँस का। पहले चरण में दीर्घ श्वास, दूसरे चरण में मध्यम श्वास, तीसरे चरण में Jain Education International For Personal & Private Use Only 161 www.jainelibrary.org
SR No.003887
Book TitleYoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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