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________________ लगे।फ़क़ीरों ने पूछा – क्या गुम गया है माँ ! राबिया ने कहा - सुई खो गई है, बेटा। सभी ढूँढने लगे, पर सुई न मिली। तभी किसी फ़क़ीर ने पूछा - माँ, हम सभी इतनी देर से ढूँढ रहे हैं, पर यह तो बताओ कि वह कहाँ गिरी थी। राबिया ने कहाबेटा, गिरी तो घर के भीतर थी। सूफ़ी फ़क़ीर हँसने लगे और कहा – माँ, तू कैसी बातें कर रही है,सुई जब घर में खोई है तो बाहर क्यों ढूँढ रही है? क्या बेवकूफ जैसा काम कर रही है? राबिया ने कहा- बाहर इसलिए ढूँढ रही हूँ कि यहाँ प्रकाश है, घर के भीतर अंधेरा है। फ़क़ीरों ने कहा - राबिया! भले ही बाहर प्रकाश हो लेकिन सुई जहाँ खोई है अन्तत: वहीं तो ढूँढनी पड़ेगी। राबिया ने कहा - बेटा, मुझे लगता था तुम जानकार नहीं हो, इसलिए तुम्हें ज्ञान दे दूं लेकिन बातों से तो ज्ञानी ही लगते हो। जब तुम्हें अहसास है कि घर में खोई हुई सुई को घर में ही ढूँढना पड़ेगा तो फ़क़ीरों तुम बाहर ढूँढने में क्यों लगे हो? राबिया की यह कहानी हमें प्रेरणा की रोशनी देती है कि घर में खोई सुई को घर में ढूँढो।अपने आप में लौटो, बाहर से भीतर की ओर मुड़ो। बाहर से भीतर मुड़ने के लिए हमें अपने चित्त को केन्द्रित करना होता है। हम गतिशील इन्द्रियों को चित्त में धरते हैं । इसीलिए ध्यान करते समय पलकों को बंद कर लेते हैं ताकि हमारी आँखें जो बाहर के दृश्यों को ग्रहण करती हैं, हमारे चित्त पर अनुकूल या प्रतिकूल प्रभाव न डालें। इसलिए पलकों को झुकाकर ध्यान करते हैं। आँखें बंद नहीं होती, पलकें बंद करते हैं । आँखें तो गहराई में खुलती हैं। यूँ तो पलकें खुलती हैं तो बाहर देखते हैं और जब पलकें झुका लेते हैं तो इन आँखों से अपने अन्तर्घट को देखते हैं, अपने-आप को, भीतर को देखते हैं । बाहर-बाहर देख लिया, अरे मनवा देख भीतर भी। 'बाहर के पट देई के, अन्तर के पट खोल' – कबीर के पद उलटबाँसी नहीं, बाँसुरी हैं। बाहर से अंदर आओ और अपनी पाँचों इन्द्रियों को चित्त की ओर अभिमुख करते हुए चित्त को केन्द्रित करते हैं, उसे बाँधते हैं, लगाते हैं और यही है धारणा। धारणा के जरिए चित्त को बाँधना और लगाना तपस्या है। लेकिन अगर हम प्रत्याहार और धारणा नहीं कर पाते हैं तो मैं कहूँगा कि प्राणायाम कर लो।ये प्रत्याहार और धारणा को खुद-ब-खुद साध लेते हैं। इतना भी न हो सके तो संगीत के साथ मस्त हो जाओ। किसी धुन को गुनगुनाओ, हाथ की तालियों से ताल दो और एकलय, एकतान हो जाओ।किसी मंत्र को भी गुनगुनाओ तो पूरे डूबकर। ध्यान क्या है - एक तान हो जाना है। धारणा है एक ही विषय में स्वयं को केन्द्रित और एकाग्र करना। धारणा अर्थात् धार लिया, धारण कर लिया। जब हमारा बिखरा हुआ चित्त 149 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003887
Book TitleYoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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