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________________ को तो गिन ही नहीं रहे थे । योग वह माध्यम है जो उस खोये हुए आदमी की पहचान करवाता है। इंसान जो दुनिया को याद रखता है, दुनिया का ज्ञान प्राप्त करता है, दुनिया के सुख-दुःख की चिंता करता है लेकिन स्वयं को भूल जाता है । दूसरे ने क्या कहा, यह झट से याद आ जाता है, दूसरे ने क्या प्रतिक्रिया की यह बात खटक जाती है लेकिन हमने क्या कहा, हमने क्या किया, हमने क्या चाहा, हमने क्या व्यवहार किया इसको हम नज़रअंदाज़ कर देते हैं। महावीर कहते हैं - दूसरों को जानना उपलब्धि है लेकिन स्वयं को जानना उससे भी बड़ी उपलब्धि है । महावीर कहते हैं - जो सहस्सं सहस्साणं संगामे दुज्जए जिणे, जे जिणेरस अप्पाणं, एस से परमो जओ- जो हजारों हजार योद्धाओं को जीतता है उसकी बजाय जो अपने-आप को जीतता है उसकी विजय ही परम विजय कहलाती है। हज़ारों को जीतने वाला भी एक से हारा हुआ है । वह है स्वयं जो खोया हुआ दसवाँ आदमी है । सिकंदर जिसने दुनिया को तो जीत लिया पर, खुद से हार गया। अपने मन से, अपनी इन्द्रियों से, अपने जीवन से, अपनी मौत से हार गया। योग हमारे सामने मित्रता का संबंध स्थापित करता है । यम, नियम से विश्व- मैत्री तो साधी जा सकती है लेकिन ज़रूरी नहीं है कि आत्म- मित्रता भी सध जाए । साधना की पहली अनिवार्यता ही आत्म-1 - मित्रता है। आत्मा ही वैतरणी नदी है, कामधेनु है, नंदनवन है और कूट शाल्मली वृक्ष है। आत्मा ही स्वर्ग और नरक का द्वार है। इसलिए जो कुछ है व्यक्ति स्वयं है । जिसने यह जान लिया वह दुनिया के अस्तित्व पर नहीं स्वयं के अस्तित्व पर विश्वास रखेगा। सबका मूल्य तभी है जब आप खुद हैं। जीवन के सारे खेलों का मूल्य आपके होने से है । अगर आप चले गए तो सारे खेल अन्तर्धान हो गए । हमें दुनिया की सभी चीज़ों को महत्त्व देना चाहिए लेकिन खुद को भूलकर नहीं । अन्यथा वही हालत हो जाएगी कि सबको तो गिन रहे हैं, पर खुद को भूले जा रहे हैं, नज़रअंदाज़ कर रहे हैं । प्रायः होता यही है कि हमारे पास सबके लिए समय होता है, पर खुद के लिए नहीं। कौन है जो जागरूकता के साथ जीवन जीता है? कौन है जिसे लगातार अपनी आत्म-स्मृति बनी रहती है ? कौन है जो अपने नित्य प्रति के कार्य सम्पादित करते हुए चेतना की याद रखता है? किसे स्मरण रहता है कि वह इस संसार में आया है और यहाँ से जाना भी है । । मुक्ति की बातें तो हो जाती हैं, पर हम सभी दुनिया के मकड़जाल में उलझे हुए हैं, निकलना किसी को याद नहीं आता। मैंने सुना है - एक व्यक्ति आईने के Jain Education International For Personal & Private Use Only | 135 www.jainelibrary.org
SR No.003887
Book TitleYoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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