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________________ सकता है। कुम्भक रहित प्राणायाम सीधा व सरल है। रेचक-पूरक चलता रहता है। जब दस मिनट तक कुम्भक रहित प्राणायाम करके ध्यान में प्रवेश करते हैं तो कुम्भक खुद-ब-खुद लग जाता है। शांत व मंद स्थिति में श्वास ठहरने लगती है। ध्यान की गहराई में शांत सरोवर-सी स्थिति बन जाती है। ___ अनुलोम-विलोम या नाड़ी-शोधन प्राणायाम में बाईं नासिका से श्वास लेते हैं और दाहिनी नासिका से निकाल देते हैं, फिर दाहिनी से श्वास लेते हैं और बाईं नासिका से निकाल देते हैं। यह क्रम निरंतर जारी रखते हैं। अनुलोम-विलोम प्राणायाम करने के लिए अंगूठे को दाहिनी नासिका पर, अनामिका व कनिष्ठा बाईं नासिका पर और शेष दो अंगुलियाँ आज्ञाचक्र या ललाट-प्रदेश पर रखें। धीरे से रेचन करें। अंगूठे से दाहिनी नासिका पर हल्के से दबाव बनाते हुए बंद करें और बाईं नासिका से श्वास भरें, अब बाईं नासिका को बंद करें व दाहिनी नासिका से श्वास छोड़ें। दाईं नासिका से ही श्वास भरें और बाईं से छोड़ें। इसी क्रम से लगातार करते रहें। अगर थकान महसूस होने लगे तो क्रिया को रोक दें। जब प्राणायाम अभ्यास में आ जाए तो धीरे-धीरे समय बढ़ाएँ, उसकी आवृत्तियाँ एक सौ आठ तक ले जाएँ। नाड़ी शोधन प्राणायाम से चेहरे पर चमक व कांति आ जाती है। शरीर में ऊर्जा का संचार होता है, वायु पर भी सकारात्मक प्रभाव होता है। तीन माह में आप पाएँगे कि शरीर की जकड़न दूर हो रही है, हड्डियों का संचालन बढ़ गया है, शरीर पुनः ऊर्जावान हो गया है। ___ हम जितने आरामतलब होंगे शरीर हमें धोखा देता जाएगा। शरीर को जितना सक्रिय रखेंगे यह हमारे लिए मित्र के समान सहयोगी बन जाएगा। योगासन व प्राणायाम हमारे लिए उपयोगी हैं, लाभकारी हैं, कल्याणकारी हैं। हम इन्हें पंछी के दो पंख बना लें और तब इनके सहारे शक्तिमान, ऊर्जावान बन सकते हैं। आप ऊर्जस्वित व शक्तिशाली बनें इसी शुभ भावना के साथ ..... अमृत प्रेम व नमस्कार! 133 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003887
Book TitleYoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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