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________________ इसीलिए कहा जाता है जीवन का संचालन करने के लिए तीन चीज़ों की आवश्यकता होती है -आहार, विहार और निहार।आहार यानी भोजन ग्रहण करना, विहार अर्थात् चलना-फिरना। अब हम केवल आहार लेते ही रहेंगे, चलेंगे-फिरेंगे नहीं, तो ऊर्जा कैसे मिलेगी। आंतरिक ऊर्जा को पाने के लिए शरीर को बाह्य रूप से मूवमेंट देना ज़रूरी है। निहार अर्थात् अपशिष्ट पदार्थ मल-मूत्र के रूप में बाहर निकल जाए। भोजन को खूब चबाकर खाना चाहिए। वह अच्छी तरह से पका हुआ भी हो। उगाना, पकाना, चबाना और पचाना - ये चारों जब सही ढंग से होते हैं तो पाचन तंत्र भी ठीक रहता है। भोजन ठीक से पका हुआ हो और खूब चबा-चबाकर खाया जाए क्योंकि मुँह में जो लार होती है वह भोजन को निगलने और पचाने में सहायता करती है। पेट में जाकर तीन घंटे बाद भोजन के पचने की प्रक्रिया शुरू होती है। तब आमाशय से एंजाइम और एसिड का स्राव होता है जो भोजन को पचाने का काम करता है । इसके बाद भोजन के पोषक तत्त्व आँतों द्वारा अवशोषित कर लिए जाते हैं। स्वस्थ भोजन स्वस्थ शरीर का आधार होता है और शरीर को स्वस्थ रखने के लिए नियमित योग करना अनिवार्य है। व्यायाम, योगाभ्यास या योग हमारे शरीर को स्वस्थ व मज़बूत बनाता है। देह की मज़बूती के साथ ही हम स्थिरतापूर्वक और सुखपूर्वक आसन में बैठेंगे।शरीर के स्वस्थ होने से हमारे भीतर स्थिरता आएगी। योग रोग को काटता है । यह शरीर को स्वस्थ तो करता ही है, रोग को काटकर प्रतिरोधक क्षमता भी विकसित करता है। रोगों की वजह क्या है? मेरी दृष्टि में पहला कारण है - असंयमित भोजन + नियमित समय पर भोजन न करना, देर रात तक खाते रहना, बाजारू खाना खाना (बाजारू खाने में शुद्धता नहीं होती), तेज मिर्च-मसाला, अधिक मिठाइयाँ, ज़रूरत से अधिक शक्कर का प्रयोग करना। शरीर को अतिरिक्त शक्कर की आवश्यकता नहीं होती। हम जो भी दूध या अन्य फलों का रस लेते हैं उनमें शर्करा की भरपूर मात्रा होती है। अत: अलग से शक्कर की ज़रूरत नहीं होती।खाना खाकर तुरंत सो जाने से भी रोगों में इज़ाफ़ा हो रहा है। सोने के चार घंटे पहले खाना खा लेना चाहिए ताकि खाया हुआ भोजन हज़म हो सके। असंयमित भोजन बीमारी का कारण है। व्यक्ति को एक दिन में कम-से-कम तीन लीटर पानी पीना चाहिए। इतना ही भोजन करें कि पानी पीने के लिए पर्याप्त जगह बनी रहे। जीने के लिए खाओ, खाने के लिए मत जिओ। सात्त्विक, संयमित भोजन करो। 122/ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003887
Book TitleYoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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