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________________ तो शिव है। हमारे देश का तो सूत्र ही है - सत्यम् शिवम् सुन्दरम्। हमारे देश की संस्कृति को सार रूप में इन तीन शब्दों में समाहित किया जा सकता है। बिना सत्य के शिव कैसा और बगैर शिव के सौन्दर्य कैसा! धर्मशास्त्र यही कहते हैं कि सत्य ही भगवान है। सत्य ही राम, कृष्ण, ईश्वर, अल्लाह और गॉड है। जो सत्य को जितनाजितना जिएगा वह उतना ही शिवत्व के क़रीब होता जाएगा। यही कारण है कि कहा जाता है सत्य को जीने वाले को वचन-सिद्धि हो जाती है। जिसने कभी झूठ न बोला हो वह सदा माता की तरह आदरणीय होता है, पिता की तरह विश्वसनीय और गुरु की तरह पूजनीय होता है। झूठ बोलने वाले को अपने झूठ को बचाने के लिए और न जाने कितने झूठ बोलने पड़ते हैं। लेकिन जो सत्य बोलता है वह अर्धरात्रि में सोते से उठाए जाने पर भी किसी बात में वह वही कहेगा जो उसने पाँच माह पहले कहा होगा। क्योंकि झूठ को याद रखना पड़ता है और सत्य इंसान का स्वभाग बन जाता है। वाणी के रूप में सत्य जिओ अर्थात् झूठ मत बोलो। राजा हरिश्चन्द्र सत्य के लिए प्रसिद्ध नाम है। वाणी के रूप में सत्य बोलना अर्थात् स्वयं को ऐसी तुला पर रखना जहाँ साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप। . जाके हिरदे साँच है, ताके हिरदे आप॥ जो सत्य को जीता है वह परमात्मा के सान्निध्य को जीता है। आजकल देखता हूँ लोगों में सत्य के प्रति निष्ठा नहीं रही। वे बात-बात में झूठ बोलते हैं। मोबाइल पर झूठ, व्यापार में झूठ, रिश्तों में झूठ, रुटीन में व्यक्ति झूठ बोल रहा है। येन-केन-प्रकारेण अपनी गोटी फिट करता रहता है। अगर उसे लगता है कि सत्य बोलने से धन कमा सकता है तो सत्य बोललेता है और झठ बोलने से कमाई होती है तो झूठ का सहारा ले लेता है। अब व्यक्ति को नीति से कोई मतलब नहीं है। सब जगह राजनीति हो गई है। ईमान या बेईमान कुछ मतलब नहीं रखता।धन आए मुट्ठी में ईमान जाए भट्टी में। परिणामतः बेईमानी से करोड़पति तो हो जाएंगे लेकिन जीवन में सुखी नहीं रह पाएँगे। किसी-न-किसी बहाने से, बीमारी से, बेटे के कुमार्ग पर जाने से,कोर्ट-कचहरियों के ज़रिए या अन्य किसी वजह से यह धन वापस चला जाएगा। कभी-कभी तो मुझे लगता है यह ठीक ही हो रहा है कि भगवान के द्वारा पैसे की वापसी का रास्ता खुल रहा है। करोड़ों रुपये के चढ़ावे बोले जा रहे हैं यह भी तो पैसे निकलने का रास्ता है जबकि इतने चढ़ावे की ज़रूरत नहीं है। चाहे धर्म के नाम पर हो या किसी अन्य नाम पर पैसा निकल ही जाता है,धन किसी के पास रहता नहीं 1101 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003887
Book TitleYoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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