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________________ में क्षमा लौटती है। जब भी बोलें भाषा में अदब हो, कुलीनता, मर्यादा और संस्कार हो । मर्यादा और संस्कार का न होना, धर्म की दृष्टि से भी हानि है, व्यवहार की दृष्टि से भी हानि है, संबंधों और रिश्तों की कटौती की भी हानि है । इसलिए मधुरता और विनम्रता से भाषा बोलने की जागरूकता रखें, बोध रखें कि आपकी वाणी पर अंकुश रहे। इसके बाद भी गलती हो जाए तो क्षमा माँग लें। अच्छे संकल्प, अच्छे विचार रखना मानसिक अहिंसा है और वाणीगत, भाषागत मधुरता रखना वाचिक अहिंसा है । कायिक हिंसा पर अंकुश लगाना कायिक अहिंसा है। इस पर कैसे अंकुश लगाया जाए? इसके लिए महावीर ने दो सुंदर शब्द दिए हैं- समिति और गुप्ति । यूँ तो ये पारिभाषिक शब्द हैं, पर इनका अर्थ है - समिति अर्थात् सम्यक् प्रकार से प्रवृत्ति करना और गुप्ति का अर्थ है सम्यक् प्रकार से प्रवृत्ति करते हुए भी, सम्यक् प्रकार से आचरण और व्यवहार करते हुए भी अगर हमारे द्वारा गलती हो जाए तो उस प्रवृत्ति पर अंकुश लगा लेना । हैं समिति और गुप्ति । जैसे कछुआ हाथ-पाँव फैलाकर चलता है लेकिन ख़तरे का अहसास होते ही अपने सारे अंगों को अपने खोल के भीतर समेट लेता है, ठीक इसी तरह सम्यक् प्रवृत्ति करते हुए भी हमसे गलती हो जाए तो अपनी गलतियों को अपने में समेट लेना, सॉरी कह देना, प्रायश्चित कर लेना, यही गुप्ति है। इसलिए कभी - कभी व्रत करें। वह व्रत नहीं कि सोमवार है इसका व्रत या आज पंचमी, अष्टमी है - उसका व्रत - ये व्रत नहीं हैं । स्वयं को दण्ड देने का व्रत करें। माना कि आपने संकल्प लिया कि भविष्य में किसी भी प्रकार से, किसी भी स्थिति में वाचिक हिंसा नहीं करेंगे। इसके बाद भी किसी दिन अचानक आपके द्वारा कुछ ऐसी बात हो जाती है कि सामने वाला दुःखी होकर रोने लगता है। उसे आपके द्वारा ठेस पहुँचती है इसलिए स्वयं को दंड दो। दंड उस रूप में कि कल मेरे द्वारा जो हिंसा हुई उसके प्रायश्चित में आज व्रत करूँगा । इस तरह जो अतिक्रमण हुआ वह प्रतिक्रमण में बदल जाएगा । कायिक हिंसा से बचने के लिए सम्यक् प्रकार से चलें, सम्यक् प्रकार से खाएँ, सम्यक् प्रकार से सोएँ । यहाँ तक कि मल-मूत्र का विसर्जन भी सम्यक् प्रकार से करें अर्थात् अपनी समस्त क्रिया-प्रतिक्रियाओं को विवेक और ज्ञानपूर्वक अपनी काया की समस्त प्रवृत्तियों को सम्पादित करें । कायिक अहिंसा को संपादित करने के लिए - 'देखो - भालो तको मत, चालो- फिरो थको मत, बोलो चालो बको मत।' अहिंसा का विवेक रखते हुए चलें। घर में झाड़ू लगाते समय, पोंछा लगाते समय, रसोईघर में खाना बनाते समय अहिंसा का बोध रखें। गर्भपात और भ्रूण हत्या भी 103 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003887
Book TitleYoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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