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________________ के लिए था। अगर तुम ऊँची सीट पर बैठे हो या पैसे वाले हो, तो सब ओर तुम्हारी इज्जत होगी, पर ये गँवा बैठे तब ? जब कोई नेता सीट से नीच उतर जाता है तो उसकी क्या स्थिति होती है यह तो उसकी आत्मा ही जानती है। तब तो पराये भी तुम्हारे अपने थे और आज अपने भी नजरें चुराने लगे हैं। एक सम्राट अपनी सत्ता के बल पर किसी का शीश तो झुका सकता है, पर किसी की श्रद्धा प्राप्त नहीं कर सकता। सिकन्दर की सत्ता के सामने शीश झुक सकता है, पर हृदय की श्रद्धा तो महावीर और बुद्ध जैसे त्यागी - तपस्वियों को ही मिल सकती है। शाश्वत पूजा त्याग की होती आई है। मनुष्य के जीवन में त्याग, संयम हो, तभी मूल्यपरक जीवन कहलाता है । महावीर के समय में अनेक राजा हुए, जिनके पास धन-वैभव और विशाल साम्राज्य था । वे सम्राट राजमहलों में सुख भोगते थे, पर महावीर के कानों में तब कीलें ठोकी गई लेकिन आज उन राजा-महाराजाओं का कोई नामलेवा तक नहीं रहा । महावीर तो रोशनी की एक मीनार हो गए हैं। बड़े - बड़े सम्राट भुला दिए गए, लेकिन महावीर और बुद्ध आज भी 'जीवित' हैं। जीसस, जिन्हें आज पूरा विश्व श्रद्धा और सम्मान दे रहा है, एक सामान्य से निर्धन परिवार से ही पैदा हुए, पर अपने संयम, त्याग और मानवता के चलते वे इतने पूजे गये कि विश्व का कोई सम्राट भी न पूजा गया । व्यक्ति जीवन में कभी सत्ता से नहीं पूजा जाता । संयम और त्याग से पूजा जाता है। भारत की पहचान उन लोगों से ही है जिन्होंने जीवन-मूल्यों को समझा और अपनाया । हमारे पास महावीर की संयम - साधना है, कृष्ण का अनासक्त योग है, राम की मर्यादा और बुद्ध की महाकरुणा है । लेकिन यह दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि जिस देश ने पूरे विश्व को सत्य, अहिंसा, ईमान का संदेश दिया वहाँ के लोग आज बेईमानी की राह पर चल रहे हैं। कुछ दिन पूर्व एक अन्तरराष्ट्रीय सर्वेक्षण हुआ, नैतिक मूल्यों के सन्दर्भ में, तो आश्चर्यजनक परिणाम आए। उसमें बताया गया कि भ्रष्टाचारी देशों में भारत का भी स्थान था। जिस देश ने पूरे विश्व को सदाचार और सद्विचार की प्रेरणा दी, वह खुद आज भ्रष्ट आचरण की राह पर अग्रसर है। हमारे पास ऊँचे सिद्धान्त हैं, पर क्या उस स्तर का हमारा जीवन भी है ? हम त्याग धर्म, आखिर क्या है ? 64 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003886
Book TitleDharm Aakhir Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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