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________________ कॉलेज में डिग्रियाँ प्राप्त कर लेते हो, क्या उसे ज्ञान समझते हो ? या इस पढ़ाई के आधार पर कोई अच्छी नौकरी पा जाते हो या व्यवसाय करने लगते हो, वह ज्ञान है ? अपनी शिक्षा के आधार पर अच्छे प्रवक्ता या व्याख्याता बन जाते हो या समाज में अपनी प्रतिष्ठा के लिए अच्छे भाषण देना सीख जाते हो, वह ज्ञान है ? यह तो ज्ञान नहीं, शिक्षा है। ज्ञान वह है जो मनुष्य के हृदय में प्रेम का, आनन्द का स्रोत बहाता है | ज्ञान तो अंतस् में नवीन तीर्थ का उदय करता है । अहिंसा, करुणा और प्रेम की त्रिवेणी जहाँ बहने लगी, समझो वहीं ज्ञान का उदय हुआ । 1 ज्ञानी होने का अर्थ है कि व्यक्ति जीवन में किसी भी प्रकार की हिंसा न करे। तुम यह न समझना कि दूसरे को कष्ट देना या चोट पहुँचाना ही हिंसा है, स्वयं के प्रति भी तुम हिंसक हो सकते हो, स्वयं को भी कष्ट और चोट दे सकते हो। तुम मजे से आत्महिंसा किए चले जा रहे हो । लेकिन भगवान कहते हैं 1 जीववहो अप्पवहो, जीवदया अप्पणो दया हो । ता सव्वजीवहिंसा, परिचत्ता अत्तकामेहिं । 1 जीव का वध अपना वध है, जीव पर की गई दया स्वयं की दया है अस्तित्व तो हमारे ही कर्मों की प्रतिध्वनि है। तुम जो करते हो वह द्विगुणित होकर तुम पर लौटता है । यह विश्व तो अन्तर्संबंधों से जुड़ा है। तुम जो देते हो, वही वापस आता है । सुख और दुःख का दाता ईश्वर नहीं है । ये सब तुम्हारे द्वारा ही दिये और लिए जाते हैं । I तुमने शेखचिल्ली की कहानी सुनी होगी कि वह एक पेड़ के नीचे बैठा था और एक मक्खी उसे परेशान कर रही थी । मक्खी बार-बार नाक पर आ जाती । उड़ाने के बाद भी उसका बैठना जारी था । शेखचिल्ली को गुस्सा आया, उसने छुरा निकाला और नाक पर चला दिया । मक्खी तो उड़ गई मगर नाक.....! इसीलिए कहा है ' जीवदया अप्पणो दया होइ।' कहते हैं जीसस के पास निकोडियस नाम का व्यक्ति पहुँचा और कहा, 'मैं एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ, आप उत्तर देंगे?" जीसस ने कहा, 'प्रश्न तो बताओ।' निकोडियस बोला, 'लेकिन मैं चाहता हूँ कि इस प्रश्न का उत्तर आप ज्ञानी होने की सार्थकता Jain Education International For Personal & Private Use Only 59 www.jainelibrary.org
SR No.003886
Book TitleDharm Aakhir Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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