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पूर्व स्वर
श्रम, आखिर क्या है?' यह बहुत ही विकट प्रश्न है। समय-समय पर इस
रहस्यमय सवाल के जवाब दिए जाते रहे हैं, फिर भी यह अनुत्तरित ही रहा। भगवान महावीर ने भी इस रहस्य पर से पर्दा उठाया और उनसे जो वचन निःसृत हुए, वे मानव-जीवन के लिए अमूल्य धरोहर हैं। उनके वचन समयातीत हैं या कहें सदा वर्तमान हैं। उनकी जीवन-दृष्टि अद्भुत है। महावीर उस मार्ग के अध्येता हैं, जहाँ से मनुष्य अपनी काराओं से मुक्त हो सकता है।
महोपाध्याय श्री ललितप्रभ सागर जी ने महावीर के सूत्रों पर अमृत प्रवचन दिये हैं, जिनका चिंतन-मनन और अनुसरण कर मानव दुःख-मुक्त होकर धर्म-पथ पर अग्रसर हो सकता है। जीवन की वर्तमान त्रासदियों से उबरने के लिए प्रस्तुत ग्रन्थ किसी तट का काम करता है।
पूज्य गुरुवर कहते हैं कि आज सम्पन्नता में भी इतनी विपन्नता है कि कहीं प्रसन्नता दिखाई ही नहीं देती, ऐसा क्यों है? इसका समाधान प्रस्तुत पुस्तक में मिलेगा कि संसार अध्रुव, अशाश्वत एवं दुःख-बहुल सपना है और सपने कभी सत्य नहीं होते। फिर भी मनुष्य क्षणिक सुख के लिए चिरकालिक दुःख स्वीकार कर लेता है। हमें अपनी दुष्पूर वासनाओं से ऊपर उठना होगा, तभी जीवन सुख और सत्य को उपलब्ध हो सकेगा। मनुष्य को अपने मिथ्यात्व की कारा को काटना होगा।
पूज्यश्री का कथन है कि ये संदेश किसी तंत्र का हिस्सा नहीं हैं, न ही कोई उपदेश हैं। ये वे वचन हैं, ऐसे जीवन-संवाद हैं कि हमारे भीतर सोया हुआ शौर्य, सिंहत्व जाग जाए, अन्तःकरण में छिपी हुई आभा, दिव्यता की परख हो सके और
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