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________________ गुरु तो बहुत मिल जाएँगे, लेकिन सद्गुरु कोई एकाध ही होता है। आज के सूत्र श्रावक के लिए कसौटी हैं। तुम्हारा जीवन झूठ का पुलिंदा हो गया है। पहले लोग साँझ को लेखा करते थे कि कितना झूठ बोला या कौन-सा गलत काम किया, लेकिन आज तो इस बात का हिसाब लगाने की जरूरत है कि कितना सच बोला या कितने अच्छे काम किए। किसी भी सत्पुरुष के लिए सत् और सत्य की जितनी मूल्यवत्ता है अन्य किसी वस्तु की नहीं है। हमारे जीवन की प्राथमिकता बनें कि हम मिथ्यामति से हटकर सत्यबुद्धि पर आ जाएँ। सूत्र है सच्चम्मि वसदि तवो, सच्चमि संजमो तह वसे सेसा वि गुणा। सच्चं णिबंधणं हि य, गुणाण-मुदधीव-मच्छाणं।। सत्य में तप, संयम और शेष सभी गुणों का वास है। जैसे समुद्र मछलियों का आश्रय है, वैसे ही सत्य समस्त गुणों का आश्रय है। सबसे पहले हमें सत्य का अर्थ समझ लेना चाहिए। वस्तुतः सत्य कोई वस्तु नहीं है। सत्य तो प्रतीति है, अनुभूति है। सत्य का अर्थ है ऐसे जीना कि जिस जीवन में वंचना न हो, जहाँ बाहर और भीतर का साम्य हो। जिसने सत्य को साध लिया, उसका सब सध जाएगा। जिसका बाहर और भीतर का जीवन एक-सा हो गया, वह हिंसा नहीं कर सकता, उसके जीवन में क्रोध, झूठ और प्रतिस्पर्धा नहीं हो सकती। सत्य आएगा तो प्रकाश उतरेगा। ___हम दो ढंग से जीवन जीते हैं हम हैं कुछ और दिखाते कुछ और हैं। बाहर कुछ है और भीतर कुछ और है। प्रदर्शन कुछ करते हैं और पालन कुछ और। महावीर कहते हैं, तुम जो हो वही रहो, कुछ और दिखाने की कोशिश मत करो, वरना तुम्हारा हर कृत्य, हर आचरण असत्यमय हो जाएगा। क्या कभी आपने विचार किया कि कभी कोई दूसरा महावीर क्यों नहीं हो पाया ? कितनों ने कोशिश की होगी, लेकिन दूसरा महावीर नहीं हो सका। सत्य की खोज के पथ पर पुनरुक्ति नहीं होती। क्या कभी दूसरे कृष्ण की बाँसुरी बजी, क्या कभी दुबारा बुद्ध की करुणा बरसी ? सत्य, स्वयं का परम स्वीकार है तब शेष गुण अपने आप आ जाते हैं। यही समझें, जो हो रहा है प्रकृति की व्यवस्थाएँ हैं मेरा कोई प्रयास नहीं है। महावीर ने जब मुनि-जीवन स्वीकार किया, तब उनके कंधे पर मात्र एक वस्त्र था। हमारे तो आग्रह हैं श्वेत वस्त्र, पीत वस्त्र या निर्वस्त्र के। तुम धर्म, आखिर क्या है ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003886
Book TitleDharm Aakhir Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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