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________________ कहते हैं कि रोम के गवर्नर पोंटिएस पायनेट ने जीसस को क्रॉस पर लटकाने की सजा दी थी। वह तत्कालीन व्यवस्थाओं के कानून से बंधा था। उसने सजा सुनाई। कहते हैं कि सजा सुनाने के बाद वह कुर्सी से उतरकर जीसस के पास गया और कहने लगा, 'आप तो क्रॉस पर लटकने ही वाले हैं, लेकिन मेरे मन में एक प्रश्न है और मैं उसका समाधान चाहता हूँ। मेरा प्रश्न है, 'अस्तित्व का सत्य क्या है ?' जीसस ने अपने जीवन में हजारों प्रश्नों के उत्तर दिए थे। सभी लोगों के प्रश्नों का समाधान किया था, लेकिन यह पहला प्रश्न था, जो किसी ने नहीं पूछा था। जीसस खड़े हुए, कुछ क्षणों के लिए आँखें बंद की, फिर चुपचाप चले गए। लोग समझ न पाए कि उन्होंने इस प्रश्न का उत्तर क्यों नहीं दिया। जीवन के अंतिम प्रश्न पर जीसस मौन हो गए, क्योंकि सत्य का कोई उत्तर नहीं होता, उसकी केवल अनुभूति होती है। सत्य को पाने की विधि बताई जा सकती है, लेकिन सत्य क्या है, इसका उद्घाटन नहीं किया जा सकता। जापान की झेन परंपरा में लिंग सू नाम के प्रसिद्ध संत हुए हैं। एक दफा जापान के सम्राट ने लिंग सू को राजसभा में प्रवचन देने के लिए बुलाया। देश भर के सुधी श्रोता आमंत्रित किए गए। सभी समय पर पहुँच गए। राजसभा खचाखच भर गई। सम्राट भी अपने सिंहासन पर विराजमान थे। ठीक समय पर लिंग सू आए और अपनी प्रवचनपीठिका पर जा बैठे। सम्राट ने उठकर प्रणाम किया और कहा, 'संतप्रवर, आप प्रवचन शुरू करें इससे पहले मैं एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ। मेरे मन में जिज्ञासा है कि आप बताएँ, सत्य क्या है ?' लिंग सू मौन हो गए, फिर अचानक उठे और सामने की टेबल पर जोर से मुक्का मारा, फिर कुछ क्षणों के लिए मौन हुए और तब चुपचाप ही रवाना हो गए। लोग समझ भी न पाए कि यह क्या हुआ ? लिंग सू प्रवचन देने आए थे और चले क्यों गए? लिंग सू की मौन अभिव्यक्ति थी-सत्य मौन में खिलता है। गौतम बुद्ध के साथ भी ऐसी ही घटना घटी। भगवान बुद्ध एक दिन कमल का श्वेत पुष्प लेकर प्रवचन-सभा में पहुँचे। वहाँ जाकर अपने आसन पर बैठ गए। हर दिन तो विराजते ही व्याख्यान शुरू कर देते थे, पर यह क्या आज तो वे शांतमौन केवल कमल-पुष्प को ही देखे जा रहे हैं। आधा घंटा बीत गया वे कुछ न बोले, फूल ही देख रहे हैं। धर्म, आखिर क्या है ? 16 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003886
Book TitleDharm Aakhir Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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