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________________ यह सूत्र मिथ्यात्व में भटकती आत्मा को सम्यक्त्व की राह दिखा रहा है। जो आत्मा भव-वन में जन्मों-जन्मों से संसार के मिथ्यात्व में डूबती आई है, उसी में जीती आई है, उसी का विषपान करती आई है, उस आत्मा के लिए पहला बोध है कि सुगति का मार्ग जान, उसे पहचान और उसकी दिशा पकड़। जो जीव मिथ्यात्व से ग्रस्त होता है उसकी दृष्टि प्रतिगामी हो जाती है। जैसे किसी ज्वरग्रस्त को मिठाई भी कड़वी लगती है, ज्ञानी कहते हैं-वैसे ही मिथ्यात्व से ग्रस्त व्यक्ति सम्यक्त्व का बोध भी विपरीत दिशा ही देता है। मुल्ला नसरुद्दीन गधे पर बैठकर कहीं जा रहा था। रास्ते में किसी ने पूछा, 'मुल्ला, कहाँ जा रहे हो ?' 'जहाँ गधा जा रहा है वहीं', मुल्ला ने जवाब दिया। 'अरे, क्या बात है, गधा कौन है तुम या यह ?' उसने पूछा । मुल्लाजी ने कहा, 'भैया, यह विचित्र प्रकार का गधा है। इससे जो कहो उल्टा ही करता है। मैं कहता हूँ दुकान चल, यह घर ले जाएगा। घर का कहूँ तो मंदिर ले जाएगा। मंदिर का बोलँ तो मस्जिद चल देगा, मस्जिद जाना हो तो बाजार की ओर चल देगा। अब मैंने कहना ही बंद कर दिया है। मैं बैठा रहता हूँ जिधर यह जाए, उधर ही चला जाता हूँ। ___ मनुष्य का अज्ञानी मन गधे की तरह है। जहाँ ले जाना चाहते हैं, वहाँ चलता नहीं। जहाँ नहीं ले जाना चाहते, वहाँ चला जाता है। गधे के हिसाब से चलो, तो पूरा गधा ही बना बैठता है। गधा, आखिर गधे के ही रास्ते पर ले जाएगा। ____ हमें मिथ्यात्व की कारा को काटना है, मिथ्यात्व से अगर मुक्त होना है तो पहली आवश्यकता सुगति के मार्ग को जानने की है। उसके प्रति प्यास और ललक उत्पन्न करें। जहाँ मनुष्य को सुगति का मार्ग मिल गया, वहीं सम्यक्त्व उपलब्ध हो गया, वहीं पर मिथ्यात्व की कारा भी कट चली। भगवान करे आप सबके जीवन में सुगति का परम पावन मार्ग उपलब्ध हो जाए। 14 धर्म, आखिर क्या है ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003886
Book TitleDharm Aakhir Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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