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________________ उनका पूर्वज्ञान परोक्षज्ञान था। अब जो हुआ, वह आत्मजनित ज्ञान ही प्रत्यक्ष ज्ञान है। लेकिन आज स्थिति विपरीत है। आज सभी लोग सबकुछ जानते हैं। जानते ही नहीं, जान-जानकर अजीर्ण भी हो रहे हैं और जब-तब इसे प्रगट करते रहते हैं कि वे सब जानते हैं। यह आज की आम समस्या है। . मुझे याद है, एक कन्या का विवाह हुआ। ससुराल में पति के अतिरिक्त अन्य कोई न था। उस कन्या को खाना बनाना नहीं आता था। न आता था, कोई बात नहीं, लेकिन डींग ऊँची-ऊँची हाँकती कि उस जैसी पाक-निपुण अन्य कोई नहीं है। जब भी कुछ बनाना होता अपने पड़ोस में जाती और कहती, 'अम्माजी यह कैसे बनाते हैं।' जब पड़ोसन बता देती तो वह कहती . 'यह तो मुझे पहले से ही आता है।' 'तब पूछने क्यों आई थी ?' 'ऐसे ही'। बस कितनी ही चीजें पूछकर बना चुकी। पड़ोसन बेचारी रहमदिल थी, वह समझती थी इसे कुछ नहीं आता। लेकिन कब तक? एक दिन पति ने खीर की फरमाइश की। वह पड़ोस में गई, फिर पूछा। बुढ़िया ने कहा, 'दूध उबालना, इसमें चावल डालकर पका लेना। फिर शक्कर डाल देना और केशर, बादाम, इलायची भी डाल देना। उसने कहा, 'यह तो मुझे पहले से ही आता था। बुढ़िया हैरान-परेशान । रोज आती है, पूछती है और कहती है उसे पहले से ही आता है। इसी तरह छः महीने बीत गए, लेकिन अब बुढ़िया ने सोचा, इसे 'अकल' देनी ही पड़ेगी। युवती फिर उसके पास आई और बोली, 'माताजी आज कुछ लोग हमारे घर आने वाले हैं क्योंकि मेरे पति का जन्मदिन है। पतिदेव चाहते हैं कि भोजन में लापसी भी बनाई जाए। लापसी कैसे बनाते हैं, बता दो। बुढ़िया ने कहा, 'पहले पानी उबाल लेना, उसमें गेहूँ का दलिया डाल देना, जब दाने पक जाएँ तो घी और गुड़ डाल देना, फिर इलायची वगैरह डाल कर जब तैयार हो जाए तो आँच पर से उतार लेना।' युवती अपनी आदत के मुताबिक बोली, 'यह तो मुझे पहले से ही आता है। वह जाने लगी, तो बुढ़िया ने पीछे से आवाज लगाकर कहा, 'एक बात तो भूल ही गई, जब लापसी बन जाए तो उसमें ऊपर से सौ ग्राम तमाखू डाल देना।' उसने फिर कहा, 'यह तो मुझे पहले से ही आता है, माँजी आप क्या बता रहीं हैं। बुढ़िया ने कहा, 'जा अपने घर, पता लग जाएगा क्या आता है, क्या नहीं आता है। धर्म, आखिर क्या है? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003886
Book TitleDharm Aakhir Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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