________________
पड़ा; तुम आराम करने की सोच रहे थे, लेकिन अब ? अब शरीर में एकदम ऊर्जा आ जाती है, सारी थकान उतर जाती है, तुम भूल जाते हो कि तुम सफर से आए हो कि चार दिन से सोए नहीं हो। सब विस्मृत हो जाता है
और तुम बेटे को लेकर अस्पताल चल देते हो। विचार जब सघन हो जाता है तब शरीर दूर हो जाता है और तब तुम्हारे शरीर का ऑपरेशन भी कर दिया जाए तो तुम्हें पता नहीं चलता।
भगवान कहते हैं-'बहिरप्पा छंडिउण तिविहेण'-मन, वचन, काया से, बहिरात्मपन से मुक्त हो जा। इसके उपरान्त 'आरूहवि अंतरप्पा' अंतरात्मा में आरोहण कर। परमात्मा का ध्यान तो बाद की बात है। पहले शरीर से, इसके राग से हटो और अन्तरात्मा में प्रवेश करो। जब अन्तरात्मा में लीनता होगी तभी परमात्मा का ध्यान कर पाओगे। बड़ा अनूठा सूत्र है जिसमें सारा योग समा गया है। महावीर कहते हैं कि शरीर के साथ, शब्दों के साथ, वचन के साथ संबंध शिथिल करो। फिर धीरे-धीरे मन के साथ। शरीर से ही शुरू करना होगा, तभी दिखाई देगा भीतर का वचन का बंधन। शरीर से मुक्त होने पर वचन दिखाई पड़ेंगे। वचन भी हमारा सेतु है बाहर से। जब वचन से मुक्त होंगे तो आँखों की पारदर्शिता को मन का बंधन दिखाई पड़ेगा। मन के पार ही तो परमात्मा छिपा है। बाहर से भीतर जाना होगा, आत्मा के अंदर जिसमें परमात्मा का वास है।
शरीर व्यक्ति को बाहर से जोड़ता है। स्वभावतः शरीर माता-पिता से मिला है। तुम इसे लेकर नहीं आए हो। लेकिन गहराई में जाओगे तो पता चलेगा कि उन्होंने भी अपने माता-पिता से यह शरीर प्राप्त किया था। एक चक्र चलता रहता है, लेकिन अंत में यह प्रकृति पर जाकर ठहरता है। यह शरीर तो मिट्टी का है, जल का है, वायु का है, आकाश का है, पंचमहाभूतों का है, तुम्हारा नहीं है। बाहर के ये तत्त्व तुम्हें प्रभावित करते हैं। इसलिए जैसे-जैसे व्यक्ति अनुभव करता है कि मैं शरीर नहीं हूँ, वैसे-वैसे बाह्य तत्त्व उसे कम प्रभावित करते हैं। फिर पूर्णिमा की रात हो या अमावस की, सब बराबर हो जाती हैं। तब शरीर में तरंगें तो उठेगी, लेकिन प्रभावित नहीं कर पाएँगी। तुम दूर खड़े द्रष्टा हो जाते हो।
लोग मेरे पास आते हैं और मन से मुक्त होने का उपाय पूछते हैं। मन से मुक्त होना है तो मन को देखना सीखो कि वह तुम्हें कहाँ-कहाँ ले जाता
परमात्म-साक्षात्कार की पहल
145
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org