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________________ इसलिए ध्यान रखना क्रोध तुम्हारे अंदर बसेरा न कर ले। क्रोधी का क्या, जहाँ कारण दिखाई नहीं पड़ता था, वहाँ भी कारण खोज लेते हैं। __ मैंने सुना है : एक पति-पत्नी में निरन्तर झगड़ा होता रहता था। पत्नी मनोवैज्ञानिक के पास गई और कहने लगी कि हमारा झगड़ा समाप्त करवाओ। मनोवैज्ञानिक उस स्त्री के स्वभाव को जानता था। उसने कहा कि तुम कुछ नम्रता से, प्रेम से व्यवहार करो, थोड़ा झुक जाओ। एक हाथ से ताली नहीं बजेगी, तू थोड़ा विनम्र हो जा, बात बन जाएगी। पत्नी ने पूछा कि इसके लिए मैं क्या करूँ ? मनोवैज्ञानिक ने पूछा, 'तुम्हारे पति का जन्मदिन कब है ?' उसने कहा, 'कल ही।' मनोवैज्ञानिक ने कहा, 'ठीक है, तब तुम उन्हें कुछ उपहार दो, इस अवसर पर उसे कुछ भेंट दो। शायद पति भी तुम में उत्सुक हो जाए और तुम्हारे जन्मदिन पर कुछ भेंट ले आए।' पत्नी को बात समझ में आ गई। वह बाजार गई और दो टाई खरीद लाई। दूसरे दिन सुबह-सुबह ही पति को भेंट कर दी। पति विस्मित था कि खुद के लिए तो बहुत सामान लाती थी लेकिन आज उसके लिए ! आज यह क्या हो गया उसके लिए दो-दो टाई ! वह बहुत खुश हुआ और कहा कि आज घर में खाना मत बनाना किसी फाइव स्टार होटल में चलेंगे। पत्नी ने सोचा, मनोवैज्ञानिक का नुस्खा कारगर हो रहा है। ___पति महोदय ने झटपट स्नान किया, कपड़े बदले, पत्नी दो टाई लाई थी, उनमें से एक टाई पहनकर बाहर आया। पत्नी ने देखा और कहा, 'अच्छा तो दूसरी टाई घटिया है, जो तुम्हें पसंद नहीं आई। ‘एक बार में एक ही टाई पहनी जा सकती है', पति बुदबुदाता रहा। अब वह कोई भी टाई पहनता....विवाद शुरू। क्रोध कहीं तुम्हारी आदत तो नहीं बन गया है ? कभी क्रोध आ जाए तो बहुत परेशान होने की जरूरत नहीं है, बस सावधान रहना चाहिए कि क्रोध आदत न बन जाए। धीरे-धीरे देखना अपनी वृत्तियों को, कषायों को और उनसे मुक्त हो जाना। वरना क्रोध में तुम कुछ भी प्राप्त नहीं कर पाओगे। जो भी होगा वह क्रोध ही होगा। ___ सूफी फकीर बोकोजू से मिलने एक युवक आया। शायद घर में झगड़ा करके आया होगा, बहुत उफन रहा था। बोकोजू कुटिया में बैठे थे, दरवाजा कृष्ण लेश्या का तिलिस्म 119 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003886
Book TitleDharm Aakhir Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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