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________________ फिर भी वह शांत पशु है । वह अपने बल से खेतों को जोतता है, सामान ढोता है, यात्रा कराता है। मनुष्य जाति का पूरा इतिहास, पूरी सभ्यता सौ वर्ष पहले तक बैलों के कंधों पर टिकी थी। मशीनें और यंत्र तो अभी ईजाद हुए हैं। बैल की भद्रता विरल है। उसने आज तक कोई बगावत नहीं की । वह चुपचाप सेवा करता रहा । उसका व्यवहार सज्जनोचित है । इसलिए महावीर कहते हैं 'वृषभ - सा भद्र' । आगे भगवान कहते हैं 'मृग-सा सरल ।' मुनि कैसा हो, मृग की तरह सरल । देखना कभी मृग की आँख, कितनी सरल, भोली और निष्पाप होती है । इसीलिए अति सरल कुँआरी कन्या को हम मृगनयनी कहते हैं। जिसकी आँखों में सरलता, भव्यता, ऋजुता छलककर आती हो उसे मृगनयन कहा जाता है । मृग जैसी कोरी, निर्मल आँखें कि जिसने कुछ पाप जाना ही नहीं, जिसने अभी दुनियादारी के दाँव-पेंच नहीं सीखे । जीसस कहते हैं कि जो बच्चे-सा सरल, निर्मल, निर्दोष होता है वही स्वर्ग का अधिकारी होता है । वही निर्मलता, निर्दोषिता और सरलता मृग की आँखों में होती है। साधु का लक्षण भी महावीर कहते हैं, मृग-सा सरल, सहज हो। इसी को कबीर ने कहा है, 'साधो, सहज समाधि भली' । महावीर के ये शब्द भीतर उतर जाने चाहिए, 'मृग जैसी सरलता' । धर्म के प्रमुख चरणों में एक चरण है -- आर्जव । आर्जव यानि सरलता। जो आर्जव - युक्त है वह धार्मिक है। जिसके स्वभाव में सरलता और ऋजुता है उसकी गति, मति, भावना एवं आचरण सभी सरल होते हैं। साधु का पाँचवाँ लक्षण है, 'पशु-सा निरीह' । पशु में अत्यधिक निरीहता है । असहाय अवस्था है पशु की । साधु ऐसा ही असहाय होगा विराट संसार के उपद्रवों के मध्य। महावीर ने पशुओं को बहुत सम्मान दिया। ये सारे प्रतीक पशुओं से लिए गए हैं। पशुओं से बहुत कुछ सीखने जैसा है। पशु जैसी सरलता, निरीहता, असहाय अवस्था बड़ी दुर्लभ है । सभ्यता ने मनुष्य की मनुष्यता को समाप्त कर दिया है, उसे पशु बना दिया है। पशु भी ऐसा कि जिसमें सहजता-सरलता नहीं है, केवल पशुता है । सिंह शिकार करता है, हिंसा करता है लेकिन भोजन के लिए ही, खिलवाड़ के लिए नहीं । सिंह का पेट भरा हो तो हमला नहीं करता । आदमी भरे पेट हमला करता है आखेट, खेल, क्रीड़ा के नाम पर । साधना की सच्ची कसौटी Jain Education International For Personal & Private Use Only 93 www.jainelibrary.org
SR No.003886
Book TitleDharm Aakhir Kya Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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