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________________ जाएगा तब आप किसी बात को सुलझा नहीं सकते। किसी समाज की मीटिंग होती है बात को सुलझाने के लिए। दस लोग इकट्ठे होते हैं। पहले से दोनों पक्ष सोचकर आये हैं कि हमें किसी भी हालत में इस बात को नहीं मानना है। आप ही बताएं कि तब दस घंटे तक भी चर्चा चलती रहे तो भी क्या निर्णय हो सकेगा? अनिर्णय रहेगा। जब पहले से ही सोचकर बैठे हैं कि हमें इस बात को नहीं मानना है तो निर्णय कैसे होगा। हाँ अगर वे सोच लें कि हमें जैसे-तैसे इस बात का समाधान निकालना ही है, तो समाधान ज़रूर हो जाएगा। हमारी छोटी-सी ग़लतफहमी किसी भी बात को बढ़ा देती है और बात का समाधान करने का छोटा-सा स्वैया बड़ी बात को समाप्त कर देता है। अब यह हम पर निर्भर है कि हम अपनी सोच और मानसिक दशाओं को किस तरह का रखते हैं, किस तरह का बनाते हैं। हम अपनी मानसिकता को निर्मल बनाने की कोशिश करें। हमारा मन अगर आवेश, आशंका और आग्रह की ग्रंथि से अलग हट चुका है तो हमारी सोच निर्मल हो सकेगी। हम अपने दिमाग़ से इस कचरे को बाहर निकाल फैंकें। कोई हमें कड़वे शब्द कह दे तो हम क्या करेंगे? कह दीजिए हमें ज़रूरत नहीं है। जब आपके घर कोई साधु-संत आते हैं और आप उन्हें कोई चीज देते हैं और उन्हें आवश्यकता न हो तो वह कहते हैं 'खप' नहीं है। दुनिया की हर खपत को मिटाने का एक ही उपाय है, जब भी कोई ऐसीवैसी बात हो आप तत्काल कहें 'मुझे यह बात खपती नहीं है।' इतना भर कहने से, आप अनुभव करेंगे कि आप कई दुविधाओं से बच गए। गांधीजी ने तीन बंदर दिए थे - बुरा मत सुनो, बुरा मत देखो, बुरा मत बोलो। आज एक बंदर मैं भी दे रहा हूँ। जिसकी एक अंगुली होगी सिर पर कि बुरा मत सोचो। गांधीजी के तीनों बंदर अपूर्ण हैं जब तक यह चौथा बंदर न होगा कि बुरा मत सोचो। अगर व्यक्ति की सोच ही बुरी है तो वह बुरा देखता है, बुरा बोलता है, बुरा सुनता है। इसलिए आदमी अपनी सोच को सुधारने की कोशिश करे। आपका जीवन आपके हाथों में है। आप किराए की जिंदगी नहीं लाए हैं और न ही किराए का जीवन जी रहे हैं। किराए के मकान की मरम्मत आप यह सोचकर नहीं करते कि एक दिन छोड़ना है, पर आपकी जिंदगी किराए की नहीं है। इसलिए देखें कि इसमें क्या-क्या चल रहा है। 98 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003885
Book TitleJivan ki Khushhali ka Raj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2006
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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