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________________ सत्य बोलें, पर मधुर बोलें। ऐसे सत्य को भी कम बोलने का प्रयास करें जो दूसरे की भावना को ठेस पहुँचाए। कभी दूसरों की कमज़ोरी का मज़ाक न उडायें। व्यंग्य भरी भाषा से बचें। आप नहीं जानते आपका छोटासा व्यंग्य सामने वाले के लिए बाण का काम कर सकता है और वह जीवन भर के लिए आपसे गाँठ बाँध सकता है। हर सास इस बात का ध्यान रखे कि अपनी बहू से कभी व्यंग्य में न बोलें। आप बहू के पीहर के लिए छोटी-सी टिप्पणी करते हैं पर उसके लिए वह बाण का काम कर सकता है। अगर आपकी बहू ग़रीब घर से आयी हो तो भी उसे बातों में उसके पीहर की ग़रीबी याद न दिलायें। महाभारत का कारण केवल जुआ या चीर-हरण ही नहीं था, अपितु द्रौपदी की वह व्यंग्यात्मक टिप्पणी थी जिससे दुर्योधन के मन में द्रौपदी के प्रति विरोध की गाँठ बँधी। ज़मीन पर चलते समय पानी का भ्रम और पानी में उतरते समय ज़मीन का भ्रम, दुर्योधन चूक खा जाता है और द्रौपदी बोल पड़ती है अंधे का बेटा अंधा होता है। दुर्योधन को यह बात बाण की तरह चुभती है और वह द्रौपदी के अपमान के लिए विद्वेष की गाँठ बाँध लेता है। पालें 'कोच' की सोच ___ व्यवहार को प्रभावी बनाने के लिए चौथा गुर है कि आप कभी किसी की आलोचना न करें। न तो औरों की आलोचना करें न ही दूसरों के द्वारा की जा रही आलोचना सुनें। ध्यान रखें, जो आज आपके सामने किसी की आलोचना कर रहा है कल वह दूसरों के सामने आपकी आलोचना भी कर सकता है। अगर आपको परिवार के किसी व्यक्ति की गलती दिखाई देती है तो आलोचना करने के बजाय 'कोच' बनने की कोशिश करें। जैसे खेल का कोच टोकता है, समझाता भी है, खेलने के गुर भी सिखाता है, इशारे भी देता है और आलोचना भी करता है, लेकिन उसका लक्ष्य, उसकी सोच, उसकी मानसिकता खिलाड़ियों को बेहतर बनाने की होती है। आप भी ऐसे ही कोच बनें ताकि व्यक्ति बेहतर जीवन जीने का मार्ग खुद को भी और औरों को भी दे सके। मुझमें कमियाँ आप निकाल सकते हैं और आप में मैं कमियाँ निकाल सकता हूँ। यह तो नज़रिया है कि व्यक्ति महान से महान पुरुष में भी कमियाँ निकाल सकता है और कमज़ोर से कमज़ोर व्यक्ति मे भी विशेषताओं को ढूँढ सकता है। 83 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003885
Book TitleJivan ki Khushhali ka Raj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2006
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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