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सबके
सुख में मेरा सुख
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व्यवहार को प्रभावी बनाने के लिए दूसरा क़दम है – दूसरों के प्रति हितकारी सोच । हमेशा अपने लिए ही न सोचें । यह हमारे विचार और व्यवहार को दोष है कि हम अपने बीवी-बच्चे और परिवार की तो सोचते हैं लेकिन दूसरों के बारे में नहीं सोचते । एक परिवार में बाज़ार से ब्रेड मंगवाई गई। उस पैकेट को जब खोला तो उसमें दुर्गंध आ रही थी । उसने अपनी बीवी-बच्चों को हिदायत दी कि ब्रेड न खायें। साथ ही कहा कि बाहर जो भिखारी बैठा है उसे ले जाकर दे दो। क्या आपके भीतर जरा भी इन्सानियत है ? सुबह की दाल, गर्मी के कारण खट्टी हो गई। आप कहते हैं कि फेंकना मत, कोई भिखारी जा रहा हो तो उसे दे देना । सावधान ! कहीं पुण्य के नाम पर हम पाप तो नहीं कमा रहे हैं। जो चीज तुम खुद नहीं खा सकते, अपने बच्चे को नहीं खिला सकते वह किसी निर्धन के बच्चे को खिलाकर उसे बीमार करने की कोशिश कर रहे हो। अगर तुम देना ही चाहते हो तो वही दो जिसका तुम खुद उपयोग कर सको। बची हुई रोटी देने तक की सोच न रखें। जब आटा भिगोओ तब तुम उसमें दो मुट्ठी आटा ज्यादा भिगोना और उसकी रोटी किसी ग़रीब भिखारी को दे देना, तुम्हारे तो आटे के डिब्बे भरे हैं, अतः दो मुट्ठी आटा निकालने पर फ़र्क नहीं पड़ेगा, पर उस ग़रीब के तो दो रोटी में काफ़ी फ़र्क़ पड़ जाएगा।
अमेरिका में एक बालक आइसक्रीम की दुकान पर गया और आइसक्रीम की कीमत पूछी तो वेटर ने बताया पिचहतर सेंट । बालक ने अपनी जेब में हाथ डाला तो पाया उसके पास पिचहतर सेंट ही है। उसने कहा 'क्या और छोटा कप या कॉन नहीं है ?' वेटर ने कहा 'हाँ है, पैंसठ सेंट का' । बालक ने पैंसठ सेंट वाली आइसक्रीम के कप का ऑर्डर दिया। बच्चे ने आइसक्रीम खाई और चला गया। वेटर जब खाली कप और प्लेट उठाने आया तो देखा कि प्लेट में दस सेंट रखे हुए हैं।
आप अपने कल्याण और सुख की सोचने के साथ दूसरों के हित का भी ध्यान रखें। हमारे सभी शास्त्र, वेद, उपनिषद और आगम यही तो पाठ दे रहे हैं कि हम केवल अपने सुख की कामना तक सीमित न रहें, बल्कि अपने जीवन में 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' की कामना लेकर चलें । हम अपने मानवीय दृष्टिकोण को उदात्त करें। यह अच्छा है कि आप समाज के मंच पर
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