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तब तक वह बाह्य रूप से तो शालीन नज़र आता है पर भीतर धूर्तता समाई रहती है। ऐसी दोहरी जिंदगी जीने वालों के लिए उनका जीवन ही प्रश्नचिह्न बन जाता है।
जब तक व्यक्ति की सोच, विचार और व्यवहार में एकरूपता स्थापित नहीं होती, तब तक उसका व्यवहार बाहरी तौर पर खुशमिज़ाज और भीतरी रूप से धूर्त हो सकता है, लेकिन उसके जीवन का श्रेष्ठ चरित्र नहीं हो सकता। व्यवहार व्यक्ति के विचार से, विचार मानसिक सोच से और मानसिक सोच आत्मिक चेतना से बनती है। जैसी व्यक्ति की सोच होती है, वैसी विचारधारा बनती है, जैसी विचारधारा होती है वैसी बुद्धि बनती है और विचार से ही आचार और व्यवहार बनते हैं। अपनी पहचान आप
पहले चरण में आपकी वाणी की शालीनता, शब्दों का चयन और जीने का तौर-तरीक़ा सामने वाले व्यक्ति को प्रभावित करता है। आप किसी के पास बैठे हैं, बातचीत कर रहे हैं, तो इसमें ख़ास यह है कि आप कैसे बैठे हैं, कितना बोल रहे हैं। किसी व्यक्ति का वाणी-व्यवहार, जीवन का व्यवहार, उठने-बैठने का सलीका यह दर्शाता है कि कौन ऊँचे कुल का है और कौन निम्न कुल का है। किसी की कुलीनता न तो पहनावे से, न ही उसके मकान, गाड़ी, कोठी, जमीन-जायदाद से प्रदर्शित होती है, वह तो उसके व्यवहार की शालीनता से प्रकट होती है। किसी भी व्यक्ति के व्यवहार को देखकर, उसके जीने के तौर-तरीके , जीवन की व्यवस्था और वाणी-व्यवहार को देखकर हम पहचान सकते हैं कि वह कौन है और कैसा है।
एक अंधा व्यक्ति सड़क के किनारे बैठा है कि तभी एक व्यक्ति वहाँ से निकलता है और कहता है 'सुन ओ अंधे, तुमने इधर से किसी को जाते हुए महसूस किया?' उसने कहा, 'नहीं, मैंने तो महसूस नहीं किया। सेनापति तुम जाओ।' तभी उसके पीछे दूसरा व्यक्ति आया और पूछता है 'सूरदास, तुमने इधर से किसी को जाते हुए पाया?' अंधे व्यक्ति ने कहा 'हाँ, तुमसे पहले सेनापति आया था और महामंत्री तुम उसके बाद जा रहे हो।' तभी तीसरा व्यक्ति आया और उसने भी पूछा, 'हे प्रज्ञाचक्षु, हे महात्मन्, क्या आपने यहाँ से किसी को जाते महसूस किया है ?' उसने कहा 'हाँ, पहले सेनापति गया,
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