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________________ अच्छी किताबों को पढ़ें, उनका स्वाध्याय करें, कुछ अच्छी बातें सीखने की कोशिश करें। भारतीय लोग स्वयं को बहुत जल्दी बूढा मानने लगते हैं, क्योंकि वे अपने दिमाग का उपयोग बंद कर देते हैं। उन्हें तो लगता है हम बूढ़े हो गए हैं अब क्या करें। मुझे याद है - एक जहाज में बूढ़ा जापानी यात्रा कर रहा था। आयु होगी लगभग अस्सी वर्ष की। वह जहाज में बैठा एक पुस्तक खोलकर कुछ पढ़ रहा था। एक अन्य महानुभाव जो उसी जहाज में यात्रा कर रहे थे, उन्होंने उससे पूछा-अरे, भाई क्या कर रहे हो? उसने कहा-चीनी भाषा सीख रहा हूँ। वे सज्जन बोले-अस्सी साल के हो गए लगते हैं। बूढ़े हो गए, मरने को चले हो। अब चीनी भाषा सीखकर क्या करोगे? जापानी ने पूछा, क्या तुम भारतीय हो? उसने कहा-हाँ हूँ तो मैं भारतीय, पर तुमने कैसे पहचाना? जापानी व्यक्ति ने कहा-मैं पहचान गया। भारतीय आदमी जीवन में यही देखता है कि अब तो मरने को चले, अब क्या करना है। हम मरने नहीं चले हैं, हम तो जीने चले हैं। मरेंगे तो एक दिन जब मृत्यु आएगी, लेकिन सोच-सोचकर रोज क्यों मरें? जीवन में बढापे को विषाद मानने के बजाय इसे भी प्रभु का प्रसाद मानें। विषाद मानने पर जहाँ आप निष्क्रिय और स्वयं के लिए भारभूत बन जाएंगे, वहीं प्रमाद त्यागने पर आप नब्बे वर्ष के होने पर भी गतिशील रहेंगे। महान दार्शनिक सुकरात सत्तर वर्ष की आयु में भी साहित्य का सर्जन करते थे। उन्होंने कई पुस्तकें बुढ़ापे में ही लिखी थी। कीरो ने अस्सी वर्ष की उम्र में भी ग्रीक भाषा सीखी थी। पिकासो नब्बे वर्ष के हुए तब तक चित्र बनाते रहे थे। यह हुई बुढ़ापे की ज़िंदादिली। जिंदगी में अपने मन को कमज़ोर करने की बजाय कुछ-न-कुछ सीखते रहें। हर उम्र में व्यक्ति सीख सकता है। संबोधि-धाम में जयश्री देवी मनस चिकित्सा केन्द्र चलता है। उस चिकित्सालय के प्रभारी चिकित्सक ने अपने पैंसठ वर्ष की आयु में पढ़ाई शुरू की और निरंतर पांच वर्ष तक अध्ययन करने के पश्चात आज वे वहाँ का चिकित्सालय संभाल रहे हैं। इसके पूर्व वे भूजल विभाग में उच्च अधिकारी थे। वहाँ से सेवानिवृत्त होने के बाद वे हमारे पास आए और बोले कि वे अपना जीवन कुछ अच्छे कार्य के लिए समर्पित करना चाहते हैं। हमने चिकित्सालय में कार्य करने का सुझाव दिया। प्रारंभ में तो वे सहयोगी के रूप में कार्य करते थे लेकिन मन में 66 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003885
Book TitleJivan ki Khushhali ka Raj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2006
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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