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________________ घर के वृद्ध का दुनिया से चले जाने के बाद उनके नाम से प्याऊ खोलने की बजाय अच्छा होगा, उनके जीते जी उन्हें पानी पिलाया जाए। उनके नाम से धर्मशाला बनाने की बजाय उनके जीते जी उन्हें घर के सबसे अच्छे कक्ष में रखें। __मैंने देखा है कि एक परिवार जो हर तरह से सम्पन्न था उसमें दादी माँ को कार के गैरेज में रखा हुआ था। मैंने परिवार वालों से पूछा 'ऐसा क्यों? ' कहने लगे 'दादी माँ को यहाँ पर सुविधा रहती है। कृपया अपने वृद्ध मातापिता को अपने घर के सबसे सुन्दर कक्ष में रखें। अगर वे रुग्ण हैं तो हो सकता है वे बिस्तर गंदा करते हों, उल्टी भी हो जाती होगी तब भी उन्हें सुविधायुक्त कमरे में रखें। उनके मरने के बाद समाज के किसी भवन में सुंदर कमरा बनवाने की बजाय जीते जी उन्हें सुन्दर कमरे में रखें। उनकी आरामयुक्त ज़िंदगी की व्यवस्था कीजिए। उनके मरने के बाद उनके चित्र पर फूल चढ़ाने और अगरबत्ती जलाने से अच्छा है उनके साथ इतने मधुर शब्दों में बोलें कि हमारी वाणी ही उनकी सेवा बन जाए। जब हम बच्चे थे तो उन्होंने हमारी प्रसन्नता से देखभाल की थी पर आज जब वे बूढ़े हो गए तो उनकी सार-सम्हाल भारी मन से कर रहे हैं। जिस घर में बूढ़े माँ-बाप और दादा-दादी के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार किया जाता हो, मैं समझता हूँ कि उन लोगों का बुढ़ापा सफल हो जाता है, उन लोगों का बुढ़ापा सार्थक होता है और वे शांति और आनंद से भरे रहते हैं। वे घर धन्य होते हैं जहाँ बूढ़े माँ-बाप के मान-सम्मान और गौरव का पूरा-पूरा ध्यान रखा जाता है। उन घरों का दर्जा मध्यम है, जहाँ माँ-बाप को उनके भाग्य-भरोसे छोड़ दिया जाता है। वे घर अधम होते हैं जहाँ जीते जी माँ-बाप का अपमान किया जाता है। शायद नरक उससे बढ़कर नहीं होता जहाँ संतान अपने माँ-बाप पर हाथ उठाने से बाज नहीं आती। अच्छा होता ऐसी संतानें धरती पर जन्म न लेतीं। ___अगर जीवन है, जीवन की व्यवस्था है तो बुढ़ापा भी आना तय है, लेकिन जो बुढ़ापे में पहुंचकर भी अपने मन को बूढ़ा नहीं होने देता वह नब्बे वर्ष का होकर भी जवान हुआ करता है। बुढ़ापा उसे सताता है जो मन से बूढ़ा हो जाता है। बुढ़ापे का प्रभाव पहले शरीर पर नहीं, मन पर आता है और 58 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003885
Book TitleJivan ki Khushhali ka Raj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2006
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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