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________________ बुढ़ापा न तो जीवन के समापन की शुरुआत है और न ही जीवन का कोई इतिवृत्त है और न ही जीवन का अभिशाप है। बुढ़ापा तो जीवन का सुनहरा अध्याय है। जिसे जीवन जीना आया, जिसने जीवन के उसूल जाने और जीवन की मौलिकता को समझने का प्रयास किया, उसके लिए बुढ़ापा अनुभवों से भरा हुआ जीवन होता है जिसमें जाने हुए सत्य को जीने का प्रयास करता है। हर किसी दीर्घजीवी व्यक्ति के लिए बुढ़ापा आना तय है। यह न समझें कि हमें ही बुढ़ापा आया है या आने वाला है। महावीर को भी बुढ़ापा आया था, राम और कृष्ण भी बूढ़े हुए थे। दुनिया में कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो लम्बे अर्से तक जीया हो और बुढ़ापा न आया हो। भले ही व्यक्ति जन्म, जरा (बुढ़ापा), मृत्यु के निवारण के लिए प्रार्थना करता है पर ये सब स्वाभाविक सहज प्रक्रिया हैं। जवानी में तो व्यक्ति दूसरों के लिए जीता है, लेकिन बुढ़ापे में व्यक्ति अपने जीवन के कल्याण और मुक्ति की व्यवस्था के लिए अपने क़दम बढ़ाता है। इतिहास ग़वाह है कि प्राचीन युग के राजा-महाराजा बुढ़ापे में वानप्रस्थ और संन्यास के मार्ग को अंगीकार कर लेते थे, ताकि मृत्यु के आने से पूर्व अपनी मुक्ति का प्रबंध कर सकें। जो बुढ़ापे को ठीक से जीने का प्रबंध नहीं कर पाते हैं, उन्हें बुढ़ापा मृत्यु देता है और जो बुढ़ापे को स्वीकार कर मुक्ति के साधनों के लिए प्रयास करते हैं उनके लिए बुढ़ापा मुक्ति का साधन बन जाता है। बुढ़ापे से बचने के लिए और जवानी को बचाने के लिए लोग दवाएँ ले रहे हैं पर बुढ़ापा सब पर आना तय है, इसमें कोई रियायत नहीं है। केवल तुम्हारे बाल ही सफेद नहीं हो रहे हैं अतीत में भी मनुष्य के सिर के बाल सफेद होते रहे हैं। यह न समझो कि केवल तुम्हारे ही कंधे कमजोर हो रहे हैं, चेहरे पर झुर्रियाँ पड़ रही हैं, दृष्टि कमज़ोर हो रही है, कानों से ऊंचा सुनाई देने लगा है, दाँत गिर रहे हैं - यह हर किसी के साथ होता है। इसके लिए हताश होने की जरूरत नहीं है। बुढ़ापे में भी बसंत है बुढ़ापा जीवन का महत्वपूर्ण पड़ाव है। यह समस्या नहीं, नैसर्गिक व्यवस्था है। यह सार नहीं जीवन का हिस्सा है। यहाँ आकर व्यक्ति स्वयं के लिए चिंतन करता है, अन्तर्मन की शांति को जीने का प्रयास करता है। जीवन 56 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003885
Book TitleJivan ki Khushhali ka Raj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2006
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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