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________________ उल्लंघन न हो सीमाओं का मित्र दो अक्षर का ऐसा रत्न है जिसकी संज्ञा हर किसी को नहीं दी जा सकती। केवल मौज-मस्ती के लिए न तो किसी को निकट आने देना चाहिए और न ही किसी के निकट जाना चाहिए। मित्रता का अर्थ प्रेम या रोमांस नहीं होता। स्वार्थी मित्रों से जितना दूर रहा जाए उतना ही अच्छा। कोई महिला अगर किसी पुरुष को अपना मित्र बना रही है तो उसे इस बात का जरूर ध्यान रखना चाहिए कि कहीं वो किसी ऐसे पुरुष को मित्र न बना बैठे जो उसके महिला होने का फायदा उठाने की सोच रखता हो। स्त्री और पुरुष की मित्रता आज के परिवेश में अनुचित नहीं कहीं जा सकती और कहीं-कहीं तो यह आवश्यक भी है, पर इस मित्रता में मर्यादा तो होनी ही चाहिए। आपका व्यवहार अपने पुरुष या स्त्री मित्र के प्रति इतना खुला हुआ भी नहीं होना चाहिए कि हमारे मित्रतापूर्ण सम्बन्धों पर लोग अंगुलियाँ उठाने लग जाएँ। कई दफा होता यह कि जब हम अपनी सीमाएँ मित्रता के नाम पर खो बैठते हैं तो कई पति-पत्नी एक-दूजे के लिए शक के दायरे में आ जाते हैं। ऐसे लोगों को सदा इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि जब उनके इन सम्बन्धों का कभी खुलासा हो जाता है तो उनकी स्थिति धोबी के गधे की तरह ही होती है। मैं अपनी ओर से केवल इतना निवेदन करना चाहूँगी कि जिस तरह पति-पत्नी का एक-दूजे पर विश्वास रखना जरूरी है उसी तरह विश्वास पर खरा उतरना भी जरूरी है। हर पति-पत्नी को चाहिए कि वह औरों से मित्रता स्थापित करने में अपनी सीमाओं का पूरा ख्याल रखें, क्योंकि दाम्पत्य जीवन प्रेम, लगाव, सम्मान और विश्वास पर ही टिका रहता है। निर्मल हृदय, निर्मल आचरण अच्छे, नेक मित्र बनाएँ। ऐसे मित्र बनाएँ जिनके साथ रहना गौरवपूर्ण हो, जीवन संस्कारित और नेक बन सके, बदी से बच सकें और प्रगति के सोपान चढ़ सकें। जीवन में भले ही एक मित्र हो, लेकिन वह ऐसा हो जो आपकी छाया हो, प्रतिरूप हो। आप सबसे सब कुछ छिपा सकते हैं, लेकिन अपने मित्र से जिंदगी की कोई बात नहीं छिपा सकते। इसलिए ऐसा मित्र बनाएँ जिसका हृदय निर्मल हो, मन विराट, दृष्टि पवित्र, मानसिकता श्रेष्ठ और आचरण निर्मल हो। जीवन में आप अगर ऐसे किसी व्यक्ति को, महिला या 53 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003885
Book TitleJivan ki Khushhali ka Raj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2006
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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