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________________ तो जरूर ही उसके आसपास के लोग जिनके बीच वह जी रहा है वे भी सभ्य हैं। व्यक्ति के जीवन में असभ्यता और फूहड़पन है तो जान लें कि वह असभ्य और फूहड़ लोगों के बीच जीया है। अगर आपकी आदत सिगरेट पीने की, गुटखा चबाने की, शराब पीने की है या और कोई बुरी आदत हो तो उस पहले दिन को याद करें कि यह आदत आपमें कहाँ से और कैसे आई। ये गलत आदतें, गलत संस्कार या दुर्व्यसन हमारी जिंदगी में कहाँ से आए। तब आपको पता चलेगा कि कहीं न कहीं किसी गलत व्यक्ति का साथ रहा होगा और आपको पता ही न चला और कुछ ही दिनों में उसने एक गलत संस्कार आपकी जिंदगी में छोड़ दिया। काम पड़ने पर जब आप सजग हुए तो आपने उस आदमी को तो छोड़ दिया लेकिन वह छूटा हुआ आदमी गलत संस्कार आपके जीवन में छोड़ गया। इसलिए सदैव सजग और सावधान रहें कि आप किन लोगों के बीच हैं और आपका पुत्र किन लोगों के बीच है। मित्र घर के बाहर भले __जब आप यह ध्यान रखते हैं कि आपका बच्चा स्कूल में क्या पढ़ाई कर रहा है, कितने अंक ला रहा है, तब इस बात के लिए भी सजग रहें कि वह किन्हें अपना मित्र बना रहा है। अगर आपके पुत्र के दोस्त आपके घर पर आ रहे हैं तो इस बात की सावधानी रखें कि वे कौन हैं। अपने पुत्र को बताते रहें कि मित्र स्कूल के होते हैं, बाजार के होते हैं, व्यापार के होते हैं, लेकिन उनके पाँव घर तक नहीं पहुँचने चाहिए। अगर आपका पुत्र जवान हो चुका है, उसके मित्र घर पर आ रहे हैं और घर के सदस्यों से निकटता बना रहे हैं तो आपके घर में कोई अनहोनी हो सकती है। पुत्र के दोस्त बाहर तक रहें तो ज्यादा अच्छा है, जिस दिन पुत्र के दोस्त घर तक पहुँच गए, जान लें कि अब आपकी बहु-बेटी सुरक्षित नहीं रहेगी। __मित्र बनाएं लेकिन एक सीमा तक ! दोस्तों की भीड़ इकट्ठी न करें। कुछ लोगों की आदत होती है अपने परिचयों को बढाने की। मेरे यह भी परिचित, वह भी परिचित हैं, थोड़ी सी बात चलाओ तो तुरंत कहेंगे हाँ, हाँ वह तो मेरा परिचित है, खास दोस्त है। न तो राह चलते आदमी का विजिटिंग कार्ड लो और न ही हर किसी को अपना विजिटिंग कार्ड दो। ज्यादा परिचयों को बढ़ाना अच्छी बात नहीं है। अगर आपके ढेर सारे मित्र हैं तो मानकर चलें कि आपका 42 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003885
Book TitleJivan ki Khushhali ka Raj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2006
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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