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________________ दुःख की दवा चिंता नहीं है। अगर आप चिंता से बचना चाहते हैं तो मुस्कुराना सीखें। हर समय मुंह लटकाये न बैठे रहें। जब मिलें जोश, उमंग, उत्साह से मिलें। सूर्योदय से पहले जगें और थोड़ा सा टहल लें ताकि आप चिन्ता से दूर हो सकें। सुबह की सैर मानसिक तरोताजगी के लिए काफी उपयोगी है। थोड़ा सा व्यायाम करें और संभव हो तो पन्द्रह मिनट तक ध्यान अवश्य करें। ध्यान आपके चिंतन को प्रखर करेगा और आपको चिन्तामुक्त करने का प्रयास करेगा। अपने आज्ञाचक्र पर यदि आप प्रतिदिन पन्द्रह मिनिट ध्यान करते हैं तो आप अनुभव करेंगे कि आप दिन भर की सौ तरह की चिंताओं से मुक्त हो गये हैं। ध्यान के बाद आप एक कागज पर दिन भर के वे कार्य लिखें जो आपको करने हैं। व्यवस्थित रूप से काम लिखें और एक-एक काम पूर्ण करना शुरू कर दें। सांझ तक सारे काम पूरे हो जाएंगे और आप चिंता से मुक्त रहेंगे। नज़र नज़र का फेर चिंता से बचने के लिए सकारात्मक विचारों में जीने की कोशिश करें और नकारात्मकता का त्याग करें। जब भी किसी के प्रति गलत विचार आये, अशुभ सोच बने अपनी दृष्टि को सकारात्मक बनाएं । माना कि एक गिलास में आधा पानी भरा हुआ है सकारात्मक दृष्टिवाला कहेगा कि गिलास आधी भरी हुई है और नकारात्मक दृष्टि वाला कहेगा कि गिलास आधी खाली है। तुम्हारे देखने के नज़रिये का यह फर्क है। आपको अपना विकास करने का पूरा अधिकार है लेकिन दूसरे के अधिकार का हनन करके नहीं। अपनी लकीर बड़ी करने के लिए दूसरे की लकीर मिटाएं नहीं। उस लकीर के नीचे बड़ी लकीर खींच दें। दूसरे की लकीर खुद-ब-खुद छोटी हो जायेगी। अपने विकास के स्वतंत्र द्वार खोलें बजाय कि दूसरे के विकास को देखकर ईष्यालु हों। मस्त रहो मस्ती में चिन्ता से मुक्त होने का अंतिम सूत्र है : हर हाल में मस्त रहो। श्री चन्द्रप्रभ जी कहा करते हैं कि हर समय व्यस्त रहो और हर हाल में मस्त रहो। जो व्यस्त और मस्त रहता है वह जिंदगी में कभी चिन्ताग्रस्त नहीं हो सकता। कितनी भी आपदा या विपत्ति आये, लेकिन हमारे हाथ से मस्ती छूट 35 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003885
Book TitleJivan ki Khushhali ka Raj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2006
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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