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जाको कुछ न चाहिए ___ आपकी रुग्णता का कारण भी मन में चलने वाली चिंता है। रोग मन में पैदा होते हैं और धीरे-धीरे उनका प्रभाव शरीर पर परिलक्षित होता है। सफलताओं के शिखर छूने की आकांक्षा में चलने वाली बेलगाम इच्छाएं जब असफलता से दो-चार होती हैं, तो ये इच्छाएं उसे चिंताग्रस्त कर देती है। चिंता पर वही व्यक्ति विजय प्राप्त कर सकता है, जो चाह पर लगाम लगा चुका है। ___अपने मन में जरा झांकें कि किस-किस तरह की चिंताएं आपको घेरे रहती हैं। बेटे की बहू आई, अगर वह स्वभाव से थोड़ी कठोर निकल गई, आपके स्वभाव के अनुकूल न निकली, तो इसी बात को लेकर चिंताग्रस्त हो जाएँगे। मेरी मौसी ने इतनी अच्छी लड़की बताई थी लड़के के लिए, उसको तो मना कर दिया और इस लड़की को ले आए, पता नहीं हमारे भाग्य ही ऐसे हैं। अब सास इसी चिंता में सूखती जा रही है। बड़ी जबरदस्त चिंताएं है लोगों की। खाना खाने बैठे तो बैंक बैलेंस की चिंता। बेटा कहीं बाहर गया है तो उसकी चिंता। जहाँ बैठे हो वहाँ का ही सोचना चिंतन है और जहाँ बैठे हो वहाँ किसी अन्य जगह का किया गया चिंतन चिंता है।
चिंताएं भी कैसी-कैसी। महिलाएं रात को सोई हैं कि ख्याल आता है कल चतुर्दशी है सूखी सब्जी बनानी है क्या बनाऊं गट्टे की बनाऊं, चने की बनाऊं, पापड़ की बनाऊं या किसी और की बनाऊं ? सब्जी बनेगी कल और चिंता हो रही है रात में। महिला सोचती है फ्रिज में चार तरह की सब्जी रखी हैं भिंडी, करेले, तुरुई, ककड़ी। क्या-क्या बनाऊं तभी मन कहता है तीन दिन हो गए हैं, ककड़ी रखी है, पड़े-पड़े सड़ जाएगी, ऐसा करूंगी सुबह सबसे पहले ककड़ी की सब्जी ही बना लूंगी। सब्जी बनेगी कल और चिंता पाली जा रही हैं आज। इसमें चिंता का क्या कारण है ? हां, आप देखना आपके अंदर पलने वाली चिंताएं आपसे कम जुड़ी होती हैं, अनावश्यक इधर-उधर की चिंताएं अधिक होती हैं। हताशा में चिंता का मूल
चिंता प्रकट होने का पहला कारण है व्यक्ति का निराशावादी दृष्टिकोण। व्यक्ति हर समय निराश रहता है, उसे अपनी क्षमताओं पर संदेह रहता है।
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