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________________ लग न जाए यह घुन । चिंतन व्यक्ति के जीवन में विकास के द्वार खोलता है और चिंता विकास के द्वारों को अवरूद्ध कर देती है। चिंता घुन है, वहीं चिंतन धुन। चिंतन हमारी बुद्धि को प्रखर करता है लेकिन चिंता बुद्धि को जाम कर देती है पर ऐसा लगता है चिंता हमारे साथ घुलमिल गई है। जब कभी आप अपनी सफलताओं से, अपने सुख-विकास से वंचित रह जाते हैं, तो केवल चिंता के दायरे में जिया करते हैं। जैसे गेहूं को घुन भीतर ही भीतर खाकर खत्म कर देता है ऐसे ही चिंता मनुष्य को भीतर से खोखला कर देती है। मैंने ऐसे कई लोगों को देखा है जो सम्पन्न हैं, जिनके पास ऐशो-आराम के सभी साधन होते हैं, पर उनके चेहरों पर तो मायूसी ही नज़र आती है। वे या तो चिंताग्रस्त हैं या तनावग्रस्त। गरीब धनहीन होकर भी खुश और प्रसन्न हो सकता है, वहीं अमीर सम्पन्न होकर भी दुःखी, तनावग्रस्त और चिंतातुर हो सकता है। किसी अमीर को उदास देखता हूँ तो लगता है कितना अच्छा होता यह व्यक्ति सम्पति का मालिक होने की बजाय शांति का मालिक हो जाता। गरीब, फुटपाथ पर भी सो रहा है, तो भी खुश है, लेकिन अमीर आदमी को सोने के लिए नींद की तीन-तीन गोलियाँ लेनी पड़ती हैं, फिर भी नींद नहीं आती । मज़दूर तो फुटपाथ पर अखबार बिछाकर सो जाते हैं, वे कभी नींद की गोलियाँ नहीं खाया करते। स्वभाव से प्रसन्न हैं, अन्तर्हृदय में शांत हैं वे झोंपड़ी में भी मस्ती की नींद लेते हैं। तनावग्रस्त और चिंतित आदमी अगर महल में भी सो रहा है तो ठीक से नहीं सो पाता है। इसलिये व्यक्ति अपने जीवन को सुखी सफल बनाने के लिए सबसे पहले अपनी चिंता की आग बुझाये। अगर इंसान सुख-दुःख की चिंता से ऊपर उठ जाये, तो वह मन की शांति का शाश्वत मालिक हो सकता है। चिंता से तो चिता भली चिंता वह आग है जो चिंतन को जला डालती है। चिंता ही चिता बन जाती है। मैं तो कहंगा भगवान चिता पर भले ही सुला दे, पर कभी चिंता की सेज पर न सुलाये। चिता हमारे शव को जलाती है, लेकिन चिंता जीते जागते इंसान को जला डालती है। यह हमारा रक्त चूस लेती है। यह हमारे जीवन के 25 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003885
Book TitleJivan ki Khushhali ka Raj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2006
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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