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आंतरिक वैभव के समक्ष फीका है। महावीर निर्वस्त्र रहते थे तब भी लोग उनके पास जाया करते थे, क्योंकि उनके पास आंतरिक सौंदर्य की सुवास थी
और यही उनका श्रृंगार था। जो अपने जीवन को सादगीपूर्वक उच्च विचारों के साथ जीते हैं, वे कितने भी बूढ़े क्यों न हो जाएं, कुरूप नहीं हो सकते। आपने महात्मा गांधी के युवावस्था और बुढ़ापे के चित्र देखे होंगे। मेरी नज़र में उनका बुढ़ापे में चेहरा अधिक सुंदर हो गया था। श्री अरविंद के बुढ़ापे के चित्रों में भी कितना सौंदर्य छलक रहा है! रवीन्द्रनाथ टैगोर का सौंदर्य भी वृद्धावस्था में निखर आया था। जैसे-जैसे हमारे विचार निर्मल होते हैं, व्यवहार पवित्र होता है हमारा चेहरा भी उतना ही तेजस्वी होता जाता है, जिसके पास जीवन का सौन्दर्य है, उसे कभी शरीर का सौन्दर्य नहीं लुभाता।।
जीवन ही हर व्यवस्था में स्वयं को अनुकूल करने का प्रयास करें और अपने बच्चों में भी यह संस्कार अवश्य डालें कि जीवन में चाहे जो भी दुविधाएँ आएं वे उन्हें जीने और भोगने में समर्थ हो सकें। अन्यथा आज की सुविधाओं को तो वे आराम से भोग लेंगे लेकिन दुविधा आने पर रोने-धोने के अलावा कुछ न कर सकेंगे। अपनी संतान को इस बात का अहसास कराते रहें कि हर हरी घास एक दिन सूख जाती है, अत: उसका प्रेमपूर्वक मुकाबला करने के लिए हमें हमेशा तैयार रहना चाहिये। काया नहीं, हृदय संवारें
जीवन का दूसरा मंत्र है-'अपने शरीर पर अधिक ध्यान न दें।' शरीर जीवन जीने का, जीने की व्यवस्थाओं को सम्पादित करने का साधन मात्र है। बार-बार आईने में न देखें कि चेहरे पर यहाँ कैसा दाग़ है या यह सांवला क्यों? शरीर के प्रति अधिक अनुरक्ति न रखें। अगर हर समय शरीर का ही ध्यान रहेगा तो छोटी-छोटी तकलीफों को सहन कैसे कर पाएँगे? रोज-रोज यह क्या कि सिर दुख रहा है या पेट दर्द हो रहा है । छोटी-छोटी तकलीफों को जीने
की कोशिश करें। अगर हाथ में फोड़ा हो गया है तो तटस्थता अनुभव करें कि 'मैं' अलग हूँ और शरीर अलग है। जो इस बोध के साथ जीता है उसके जीवन में चाहे जितने उपद्रव आएँ, लेकिन वे उसे सता न सकेंगे। वरना एक छोटेसे फोड़े में आह-ऊह-ओह दिनभर चलती रहेगी।
शरीर के रंग का भी क्या देखना! अगर देख सकते हो तो हृदय की
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