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________________ न जन्म न मृत्यु न जन्म -श्री चन्द्रप्रभ अष्टावक्र महर्षि हुए और जनक राजर्षि। दोनों के बीच संवाद बनाया का प्रतिफलन ही 'अष्टावक्र-गीता' है। आत्मा से आत्मा के बीच सार्थक वार्ता का उपक्रम इस महान धर्मशास्त्र के द्वारा स्थापित हुआ है। 'अष्टावक्र-गीता' में अनेक छोटे-छोटे सूत्र और संदेश हैंजैसे- तुम कौन हो? * तुम्हारे जीवन का मूल स्रोत क्या है? * तुम्हारा वर्तमान क्या है? * तुम्हारा अतीत कैसा रहा? * क्या तुम अपने भविष्य में अतीत को दोहराना चाहते हो या प्रकाश से भर जाना चाहते हो? तुम शिशु रूप से पहले क्या थे? . क्या मृत्यु ही जीवन का समापन है? ये सभी जीवन के संवाद हैं, जो अंतःकरण को ज्ञान से भर देते हैं। जो लोग देह-भाव से मुक्त होकर आत्म-ज्ञान से भरपूर जीवन जीना चाहते हैं, उनके लिए वरदान हैं ये संवाद। 'अष्टावक्र-गीता' सत्य का अद्भुत शास्त्र है, जिसमें अध्यात्म का पुट समाविष्ट है। यह एकदम व्यावहारिक है और सत्य की गहराई तक ले जाता है। इसके सभी सूत्र मनुष्य के जीवन में प्रकाश भरते हैं। यह मनुष्य की उस अन्तर्दृष्टि को खोलना चाहती है, जहां जाकर आदमी अपने वास्तविक सुख, स्वास्थ्य, आनंद और प्रकाश का स्वामी बनता है। अष्टावक्र का कहना है कि गृहस्थ में रहते हुए भी संन्यस्त जीवन जिओ। संसार और परिवार में रहते हुए आत्मनिष्ठ होकर जीना ही वास्तविक जीवन है। 'अष्टावक्र-गीता' का यही आधारभूत दर्शन है। छिमाई आकार • पृष्ठ: 128 • मूल्य : 48/- • प्रकर्ष : 15/ कीशक्तिका a admaste विश्व के सफल एवं महान व्यक्तियों की शक्ति का स्रोत आध्यात्मिक विकास -श्री चन्द्रप्रभ अध्यात्मिक विकार ।। महान चिंतक एवं दार्शनिक संत श्री चन्द्रप्रभ के अमृत प्रवचनों की यह एक ऐसी अद्भुत-अनमोल पुस्तक है जो व्यक्ति को आध्यात्मिक शांति, शक्ति और मुक्ति प्राप्त करने का रास्ता प्रदान करती है। श्री चन्द्रप्रभ कहते हैं कि विश्व के प्रत्येक सफल और महान व्यक्ति की श्रेष्ठता के पीछे एक तत्त्व का हाथ अवश्य रहा है और वह है उसकी आध्यात्मिक शक्ति... आध्यात्मिक शांति... आध्यात्मिक सौंदर्य! अध्यात्म कोई ऐसा शब्द नहीं है जिसका संबंध किसी अलौकिक असाधारण व्यक्ति के साथ हो। अध्यात्म तो सीधे अर्थ में अपने में अंतर्निहित मानसिक और चैतन्य शक्ति के साथ एकाकार होना है। मनुष्य की आध्यात्मिक शांति और शक्ति से अपने तार जोड़ने के लिए यह पुस्तक किसी वरदान के समान है। अध्यात्म की कुंजी बनकर यह हमारे मानव-मन को बहुत गहरे तक प्रभावित करती है और जीवन के अंधेरे कोनों में रोशनी के चिराग स्थापित करती है। इसे पढ़ना किसी आहादकारी अनुभव से गुजरना है। आप धैर्यपूर्वक इसे पढ़ते जाइए, आपके सामने जीवन की आंतरिक गहराइयों की पर्ते स्वतः खुलती जाएंगी। मनुष्य की चेतना के विकास और निखार के लिए मित्र बनाइए अपने हाथ में आ चुकी इस अद्भुत-अनमोल पुस्तक को। छिमाई आकार • पृष्ठ : 152 • मूल्य : 60/- • प्रकखर्च : 15/ श्रीन्द्रपा UPTA Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003885
Book TitleJivan ki Khushhali ka Raj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2006
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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