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मोपाध्याय ललिता सागर
आखिरक्या है कर्मधान नुति या एक भयावह
धर्म आखिर क्या है कर्म• बंधन • मुक्ति या एक अमूल्य धरोहर?
___ -महोपाध्याय ललितप्रभ सागर 'धर्म, आखिर क्या है?' यह बहुत ही विकट प्रश्न है। समय-समय पर इस रहस्यमय सवाल के जवाब दिए जाते रहे हैं, फिर भी यह अनुत्तरित ही रहा। भगवान महावीर ने भी इस रहस्य पर से पर्दा उठाया और उनसे जो वचन निःसृत हुए, वे मानव-जीवन के लिए अमूल्य धरोहर हैं। उनके वचन समयातीत हैं या कहें सदा वर्तमान हैं। उनकी
जीवन-दृष्टि अद्भुत है। महावीर उस मार्ग के अध्येता हैं, जहां से मनुष्य अपनी काराओं से मुक्त हो सकता है। महोपाध्याय श्री ललितप्रभ सागर जी ने महावीर के सूत्रों पर अमृत प्रवचन दिए हैं, जिनका चिंतन-मनन और अनुसरण कर मानव दुःख-मुक्त होकर धर्म-पथ पर अग्रसर हो सकता है। जीवन की वर्तमान त्रासदियों से उबरने के लिए प्रस्तुत ग्रंथ किसी तट का काम करता है।
डिमाई आकार • पृष्ठ : 160 • मूल्य : 60/- • डाकखर्च : 15/
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ध्यान योग (प्रायोगिक वचन और विषि)
-महोपाध्याय ललितप्रभ सागर ध्यान के सागर में प्रवेश करते ही विचारों की लहरें झकझोरने लगेंगी, किंतु धैर्य और अभ्यास की कला यदि आपमें आ गई यानी निरंतर आप अभ्यस्त होने लगे तो यह मानव-शरार भव-सागर से सहज ही पार हो जाता है। दुःख, द्वेष, क्लेश
व्यान योग आदि नष्ट हो चके होते हैं। आत्मा अविरल. निर्मल और
प्रायोगिक वचन और विधि) कांतिमय हो चुकी होती है। आप दिव्य आत्मा को धारण कर मानवलोक में रहते हुए दिव्य धाम का परम आनंद प्राप्त करने लगते हैं। आज आवश्यकता है कि इस कलुषित वातावरण में सहज रूप से ध्यान लगाने की कला सीखना, जानना और अभ्यास करना ताकि आप स्वच्छ विचारों वाले, जन-सहयोगी एवं अलौकिकता के प्रतिमूर्ति बन सकें। इस पुस्तक में ध्यान संबंधी अथाह ज्ञान प्रायोगिक विचारों के द्वारा वर्णित है। इसमें आप वह सब कुछ पा सकेंगे जो आपके लिए अत्यंत उपयोगी है। आइए, इसे आत्मसात करें।
हिमाई आकार • पृष्ठ: 168 • मूल्य : 60/- • अकबर्ष : 18/
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