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________________ हमारे पास अधिकांश लोग यही शिकायत लेकर आते हैं कि बच्चे उनके कहने में नहीं है, बुरी संगत, बुरी आदतों से घिर गए हैं, बच्चा मनमानी करता है, उन पर हाथ उठाने लगा, सामने जवाब देने लगा है, जान से मरनेमारने की धमकी दे रहा है। इस तरह उनका बच्चा बिगड़ता जा रहा है। मैंने देखा है कि बच्चा बाईस वर्ष का होता है उससे पहले ही अपने माँ-बाप का जीवन नरक बना देता है। इसलिए उन्हें अहसास करा दिया जाए कि वे मोबाइल पर जो गप्पे लगा रहे हैं या दोस्तों की महफिल में जाने के लिए कार में पेट्रोल फूंक रहे हैं इसका उपयोग अपनी जिंदगी में अपने ही बलबूते पर करें। पहले खुद कमाओ, फिर उसका उपयोग करो। सुख नहीं, दुःख जुटा रहे हैं कई लोगों की सोच होती है कि उन्होंने बचपन में दुःख उठाए हैं अब अपने बच्चों को क्यों वही दुःख उठाने दें? सो वे बच्चों के लिए हर सुविधा का सामान जुटा देते हैं। पर याद रखें, आप तो दुःख के दिनों से उबरकर सुख में आ गए हैं लेकिन आपके बच्चे सुख देखकर दुःख में जाने वाले हैं। तुमने दु:ख के, परिश्रम के संघर्ष के दिन देखे थे इसलिए तुम्हें खबर है पैसा कैसे कमाया जाता है और उसने बचपन में सुख के दिन देखे हैं, इसलिए आगे जाकर वह दुःख के दिन देखने वाला है। इसलिए उसे अहसास कराएँ कि बेटा, जीवन में धन का कितना उपयोग है और उसे कितनी मितव्ययता के साथ खर्च किया जाना चाहिए। उन्हें बुद्धिमान बनाएँ, पर इतना भी न बनाएँ कि वह आपको ही बुद्ध बनाने लगे। ___कुछ वर्षों पूर्व हम जयपुर में किसी परिवार में एक दिन के लिए ठहरे हुए थे। मैंने पूछा, 'बिटिया कहाँ है?' कहने लगे, 'बाहर गई है गाड़ी लेकर' दोपहर में फिर पूछा, 'बिटिया नहीं आई ?' बताया कि वह अपनी सहेलियों के साथ घूमने-फिरने गई है। सांझ को फिर पूछा तो बताया गया कि वह अपनी सहेलियों के घर से अभी तक नहीं आई है, जिस घर में इतना भी अंकुश नहीं है कि बेटी कितनी देर तक घर के बाहर रहे और माता-पिता को यह भी खबर नहीं है कि बेटी किस सहेली के यहाँ गई है। क्षमा करें ऐसी लड़की जब बीस साल की हो जाएगी तो वह कभी तुम्हारे हाथ की रहने वाली नहीं है। यदि तुम अपने बच्चे को बचपन में हद से ज्यादा सुविधाएं देते रहे तो ये सुविधाएँ ही उनके और तुम्हारे लिए दुविधाएँ बन जाएँगी, क्योंकि 123 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003885
Book TitleJivan ki Khushhali ka Raj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2006
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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