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________________ बुलाएँगे, सूची बनाई गई । कुछ सुझाव पत्नी ने भी दिये। उसके लिए कैसे खिलौने लाने हैं इसकी चर्चा हुई, क्या कपड़े बनवाएँ जाएंगे इस पर भी बात कर ली। लड़का बड़ा होगा तो उसे पढ़ाएंगे लिखाएंगे, अच्छे स्कूल में शिक्षा दिलवाएंगे। लेकिन वह बड़ा होकर क्या बनेगा ? पति ने कहा ' अपने बेटे को तो डॉक्टर बनाएंगे' पत्नी ने कहा 'अरे छोड़ो आजकल डॉक्टरों को पूछता कौन है, थोड़े दिनों बाद हालत यह हो जाएगी कि डॉक्टर ठेलागाड़ी लेकर चलेंगे और आवाजें लगाएँगे इंजेक्शन लगवा लो, इंजेक्शन। मैं तो अपने बेटे को एम. बी. ए. कराऊँगी। आजकल उसकी ज्यादा कीमत है ।' पति ने कहा 'नहीं, एम. बी. ए. नहीं कराएँगे, डॉक्टर ही बनाएँगे । ' दोनों में तनातनी हो गई, दोनों ही अपनी बात पर अड़ गए। बात बढ़ती गई और रात भर विवाद चलता रहा। दोनों एक-दूसरे से नाराज़ हो गए। पति कहा 'तू मेरी बात क्यों नहीं मानती।' पत्नी ने कहा 'जब बात नहीं मानते तो साथ रहने का मतलब क्या ।' पत्नी मायके चली गई। बात बढ़ती जा रही थी, मामला तलाक तक जा पहुंचा। दोनों न्यायालय तक पहुंच गए अपनी-अपनी बात पर अड़े हुए। पत्नी ने कहा ' अब भी मान जाओ, बेटे को एम. बी. ए. बना दो ।' पति ने कहा 'नहीं, मर जाऊँगा पर बेटे को डॉक्टर ही बनाऊँगा ।' दोनों ही प्रकृति के थे । न्यायालय में न्यायाधीश ने वाद-प्रतिवाद सुना और कहा 'आप दोनों ही भले नज़र आते हो फिर तलाक क्यों ले रहे हो ? कारण बताओ तो मैं कोई समाधान कर दूं।' पति ने कहा 'मेरी पत्नी चाहती है कि अपने बेटे को एम.बी.ए कराये और मैं उसे डॉक्टर बनाना चाहता हूं ।' न्यायाधीश ने कहा 'इसमें लड़ने-झगड़ने की या तलाक लेने की क्या बात है । इसका समाधान मैं कर देता हूं। तुम्हारा लड़का कहाँ है उसे बुलाओ उसी से पूछ लेते हैं, वह क्या बनना चाहता है।' पति-पत्नी एक-दूसरे का मुँह देखने लगे कि लड़का कहाँ है। न्यायाधीश ने पूछा 'क्या बात है लड़का कहीं बाहर गया है क्या ?' ज़वाब मिला 'बाहर नहीं गया है लड़का तो अभी जन्मपत्री में है ।' व्यर्थ की कल्पनाएँ। याद रखें, जो कल देता है वह कल की व्यवस्थाएँ भी देता है। बच्चे का जन्म बाद में होता है, माँ का आंचल दूध से पहले भर जाता है, यह है प्रकृति की व्यवस्था । यह प्राणीमात्र के लिए प्रकृति की व्यवस्था है कि जो चोंच देता है वह चुग्गे की व्यवस्था भी ज़रूर करता है । Jain Education International 112 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003885
Book TitleJivan ki Khushhali ka Raj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2006
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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