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________________ भावना पल रही है तो वह उस गिद्ध की तरह है तो धरती से कोसों ऊपर भी चला जाएगा, तब भी मांस के टुकड़े को देखते ही तुरन्त धरती पर मांस का टुकड़ा तलाशेगा। जो व्यक्ति कितना भी ऊपर उठ जाएगा, लेकिन निमित्त मिलते ही, वासना के अंकुरित होते ही दुष्कर्म की ओर बढ़ जाएगा । वासना आगे तो बड़े-बड़े ऋषि महर्षि भी धराशायी हो गए हैं। अगर विश्वामित्र गिरते हैं तो इसका दोष किसी मेनका को देने की बजाय, विश्वामित्र के मन के अंदर छिपे वासना के बीज को ही है, जो मेनका का निमित्त पाकर उजागर हो गया । इसलिए मनुष्य टटोले अपने आपको कि वह वासना से कितना ऊपर उठ पाया है। आप ईमानदारी से अपने भीतर झांके और देखे कि क्या मन तृप्त हो गया है ? जैसी नज़र वैसा नज़ारा तीसरा मंत्र देना चाहूंगा नजर की निर्मलता का । जब भी किसी को देखें पवित्र आँखों से देखें। आपको सुंदर महिला और सुंदर पुरुष को देखने का पूरा हक़ है लेकिन शर्त यही है कि निर्मल आँखों से देखें । पवित्र आँखों से दुनिया के सौन्दर्य को देखें । मनुष्य सुंदरता ज़रूर देखे पर सही नज़रिये से देखे | जैसी हमारी नज़रें होती है, नज़ारा वैसा ही होता है। जैसी दृष्टि होगी वैसी ही सृष्टि भी होगी। तुम अपनी आँखों पर काला चश्मा चढ़ा लो तो सफेद दीवार भी काली हो जाएगी। ज़रूरत दीवार या दुनिया को बदलने की नहीं है, ज़रूरत है व्यक्ति की दृष्टि को बदलने की। बिना सम्यक दृष्टि, बिना निर्मल दृष्टि जब भी किसी को देखोगे मलीनता ही होगी । 1 मीरा गाती थी - 'बसो मेरे नैनन में नंदलाल ' हे प्रभु! मेरी आँखों में आकर ही बस जाओ, फिर मैं किसी को देखूं भी तो मुझे तुम ही नज़र आओ । जहाँ नजर डालूं, वहीं तुम दिखाई दो। इसलिए अपनी आँखों कों, नज़ारों को निर्मल बनाएं। जब भी किसी को देखें तो सतर्क रहें कि कहीं आपकी नजरों विकृति तो नहीं है, आँखों में विकार की ग्रंथि तो नहीं है। बुरी नजरों से आप किसी अच्छे व्यक्ति को भी देखेंगे तो आपको उसमें बुराई ही नज़र आएगी। आप हमसे मिलने आते हैं और हम आपको अच्छे लगते हैं, क्योंकि आपकी आँखों में अच्छाई है और अगर हम बुरे लग जाएं तो दोष अपनी आँखों को देना क्योंकि हम तो जैसे हैं वैसे ही हैं। वास्तव में हम जैसे होते हैं, वैसा ही दूसरों को देखते हैं । Jain Education International 102 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003885
Book TitleJivan ki Khushhali ka Raj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2006
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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